Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

आनंद-आह्लाद, उत्साह व आरोग्य प्रदाता होलिकोत्सव

(होली पर्व : 24 से 25 मार्च)
होलिकां आगतां दृष्ट्वा हृदये हर्षन्ति मानवाः ।
होलिका आने पर हृदय में हर्ष होता है । हर्ष, प्रसन्नता अनिवार्य है परंतु अगर सावधान नहीं रहे, हर्ष को गलत साधनों से प्राप्त किया तो पतन होता है और हर्ष को ऊँचे साधनों से प्राप्त करते हैं तो उत्थान होता है । जैसे यह पर्व लोग मनाते हैं तो डामर (लेरश्रींरी) मुँह पर लगा देते हैं या गंदे-गंदे अश्लील गाने गाते हैं अथवा एक-दूसरे को जूतों का वीभत्स हार पहना देते हैं । ना-ना ! इस उत्सव का फायदा उठाना चाहिए, इस उत्सव से किसीको नुकसान नहीं पहुँचना चाहिए ।
जीवन में थोड़ा शौर्य होना चाहिए, थोड़ा आत्मबल होना चाहिए । कोई भी किसी भी रीति से लकड़ी लेकर चलाये तो अपन पशु थोड़े ही हैं कि चलते जायें ! ‘जो धर्म के अनुकूल होगा वह करेंगे, जो धर्म के प्रतिकूल होगा वह नहीं करेंगे । जिससे हमारा, पड़ोसी का, समाज का और देश का हित होगा वह करेंगे, बाकी का हम नहीं करेंगे ।’ ऐसी जीवन में हिम्मत होनी चाहिए ।
इससे अपना व समाज का कल्याण हो जायेगा
अगर अपना और समाज का कल्याण चाहें तो होली के दिनों में फाल्गुन शुक्ल एकादशी (आमलकी एकादशी) से लेकर दूज (चैत्र शुक्ल द्वितीया) तक 20-21 दिनों का उत्सव मनाना चाहिए । इन दिनों में बालकों व युवकों को सेवाकार्य ढूँढ़ लेना चाहिए । जो शराब पीते हैं ऐसों को समझायें और उनको भी अपने साथ लेकर प्रभातफेरी निकालें । प्रभात में सात्त्विक वातावरण का भी लाभ मिलेगा, हरिनाम के कीर्तन का भी लाभ मिलेगा । ‘यह हृदय के आनंद को उभारने का, रामनाम की प्यालियाँ पीने का उत्सव है, न कि अल्कोहल (शराब) का जहर पी के अपना खानदान बरबाद करने का उत्सव है’ - ऐसा प्रेमपूर्वक समझा के वे बालक और युवान दूसरे बालकों और युवानों को सुमार्ग में लगाने की सेवा कर सकते हैं ।
माइयाँ (महिलाएँ) प्रभात को होलिकोत्सव के गीत गा के कुटुम्ब में उत्साह भर सकती हैं और भाई लोग जो दूषित, संकीर्ण, राग-द्वेष के स्वभाव का कूड़ा-करकट एकत्र हुआ है उसे इस दिन जला के नये जीवन की शुरुआत करने का संकल्प कर सकते हैं । इन दिनों में भागवत, रामायण की कथा, महापुरुषों के जीवन-चरित्र आदि पढ़ना-पढ़ाना, सुनना-सुनाना हितकर है । यह वसंत ऋतु है तो तुम्हारे चित्त में भी वासंत्य अर्थात् आनंद आ जाय । इन दिनों में दान-पुण्य भी किया जाता है ।
अन्य युगों से कलियुग में मिलेगा ज्यादा लाभ
ये उत्सव जीवन में एक नया उत्साह ले आते हैं और इनमें अगर कथा-वार्ताओं, महापुरुषों के जीवन-चरित्रों के पठन-श्रवण एवं प्रभातफेरियों का लाभ मिल जाता है, महान तत्त्व की व्याख्या सुनने की जिज्ञासा हो जाती है तो ये उत्सव प्राचीनकाल में जितना लाभ करते थे उतना ही लाभ कर सकते हैं, उससे भी ज्यादा लाभ कर सकते हैं ।
यह कैसे ? कलियुग में दोष तो बहुत हैं परंतु एक सद्गुण बढ़िया है । विष्णु पुराण में महर्षि वेदव्यासजी कहते हैं कि ‘‘सतयुग में 10 वर्ष तप, ब्रह्मचर्य, जप आदि करने से जो पुण्य होता था वह त्रेता में एक वर्ष, द्वापर में एक मास और कलियुग में एक दिन-रात से प्राप्त हो जाता है ।’’
इसलिए मैं दावे से कहता हूँ कि और युगों में इन उत्सवों का जो लाभ होता था उससे ज्यादा लाभ इस युग में हो सकता है । अगर इनका उपयोग ऐसा किया जाय तो बेड़ा पार हो सकता है ।
यह सावधानी बहुत जरूरी है
लोग खा-खा के पेट के साथ जुल्म करते हैं, फिल्म आदि देख-देखकर आँखों के साथ जुल्म करते हैं, व्यर्थ की बातें सुन-सुन के कानों के साथ जुल्म करते हैं और व्यर्थ का स्पर्श करके जीवन की शक्तियों का ह्रास करते हैं । ऐसे उत्सवों में अगर असावधान रहते हैं तो स्त्री-पुरुष, देवर-भाभी, पड़ोसी-पड़ोसन, युवान-युवती एक-दूसरे से छूट-छाट ले के एक-दूसरे के अंगों को स्पर्श कर लेते हैं तो जो विकार सुषुप्त हैं वे उत्तेजित हो जाते हैं और होली तो बाहर जलती है परंतु उनके हृदय में कामुकता की होली जलने लग जाती है, लाभ होने के बजाय हानि हो जाती है ।
इन उत्सवों का क्षुद्र मति के लोग अगर अपने मनमाने ढंग से उपयोग करें तो समाज का, देश का, नीति-धर्म आदि का पतन होता है । अगर संतों, ऋषियों और शास्त्रों के निर्देशानुसार मनाये जायें तो ये उत्सव जीवन में उत्साह-आनंद लाते हैं, हृदय की क्षुद्रता मिटाते हैं और जीव को देर-सवेर शिव से मिलाने का सामर्थ्य रखते हैं ।
भाग्य बनाने हेतु बड़ा भारी अवसर
होली की रात्रि ध्यान, जप की कमाई की रात्रि है । होली, महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, दिवाली - इन पर्वों की रात्रियाँ अपना भाग्य बनाने के लिए बड़ा भारी अवसर हैं ।
मेटत कठिन कुअंक भाल के ।
इन रातों में किया गया भगवन्नाम-जप और जागरण भाग्य के कुअंक मिटाने में सक्षम है । तो होली का फायदा उठाओ । श्वास अंदर जाय तो भगवान का नाम, बाहर आये तो गिनती... इस प्रकार श्वासोच्छ्वास की साधना करो अथवा गुरुमंत्र का जप करो ।
संत कबीरजी ने कहा है :
माला श्वासोच्छ्वास की भगत जगत के बीच ।
जो फेरे सो गुरुमुखी ना फेरे सो नीच ।।
होली से स्वास्थ्य-रक्षा
पहले के जमाने में लकड़ियाँ बहुत रही होंगी तो लोग जलाते थे । आजकल लकड़ियों की कमी है तो नपी-तुली लकड़ियाँ जला दीं । घड़े में धान्य (ज्वार-बाजरा आदि) डालकर उबालते हैं । दूसरे दिन उसको बाँटते हैं । इसे घूघरी बोलते हैं । यह आरोग्य की रक्षा करती है । इसमें विटामिन्स होते हैं, यह कफनाशक भी होती है और देवों को अर्पण करके कृतज्ञता व्यक्त करने का भाव भी इसमें होता है ।
होली के बाद 15 दिनों तक सुबह-सुबह नीम के 20-25 कोमल पत्ते 1-2 काली मिर्च के साथ चबा के खा लो और पानी पी लो तथा बिना नमक का भोजन करो, तबीयत अच्छी हो जायेगी । नमक नहीं छोड़ सकते तो कम-से-कम नमक का उपयोग करो, ये नमक से बचने के दिन हैं ।
होली खेलें पर पलाश के फूलों से
पलाश के फूलों का रंग रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है । गर्मी को पचाने की, सप्तरंगों व सप्तधातुओं को संतुलित करने की क्षमता पलाश में है । तो आप लोग पलाश के पुष्पों के रंग से होली खेलना । होली के बाद सूर्य की किरणें सीधी पड़ेंगी तो आपके सप्तरंग और सप्तधातु थोड़े कम्पायमान होंगे । इनको संतुलित रखने के लिए पलाश के पुष्पों के रंग से होली खेलने की व्यवस्था थी । दुर्भाग्यवश रासायनिक रंगों से जब होली खेलते हैं तो हानिकारक रसायन रोमकूपों के द्वारा प्रविष्ट हो के तुम्हारे सप्तरंगों को उत्तेजित और तुम्हें विक्षिप्त कर देते हैं । अगर आँखों में इन रंगों का प्रभाव ज्यादा पड़े तो नेत्रज्योति पर भी बुरा असर हो सकता है । आप स्वास्थ्य की रक्षा करना चाहें तो पलाश के फूलों से होली खेलना, रासायनिक रंगों से बचना ।
REF: ISSUE362-FEBRUARY-2023