Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

मकर संक्रांति कैसे मनायें ?

15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व है । क्या है इस पर्व की विशेषता और इस दिन क्या करना चाहिए, क्या नहीं इस बारे में पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत में आता है :
मकर संक्रांति को सूर्यनारायण मकर राशि में प्रविष्ट होते हैं । हर महीने एक-एक राशि बदलती है । कुछ लोग बोलते हैं कि ‘सूर्य खड़ा है, पृथ्वी चलती है ।’ परंतु भारतीय संस्कृति के महा मनीषियों ने कहा कि ‘ऐसी कोई साकार वस्तु नहीं है जो स्थिर रहे । सबमें परिवर्तन होता है, सब चलरूप हैं ।’
पृथ्वी चलती है, ऐसे ही नक्षत्र आदि सब चलते हैं । अचल तो एक अचल तत्त्व है, बाकी जो भी साकार दिखता है वह स्थिर हो ही नहीं सकता ।
विज्ञान भले अपने तर्क देकर कुछ कहे परंतु हमें तो मति से परे तत्त्व में पहुँचे हुए महापुरुषों की बात पर ज्यादा भरोसा होता है । जो चलता है वह चलता ही रहता है और जो चलने को देखता है वह चलने से परे अचल आत्मा है । उस अपने अचल आत्मा में टिकने के लिए संकल्प दृढ़ करें ।
मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, जप, तप का प्रभाव ज्यादा होता है । यशोदाजी ने तेजस्वी संतानप्राप्ति के लिए उत्तरायण का व्रत किया था । उत्तरायण के दिन रात्रि का भोजन न करें तो अच्छा है किंतु जिनको संतान हैं उनको उपवास करना मना किया गया है । आज खाना नहीं खाते हैं किसलिए ? कि भगवान में मन लगे और जो पुत्रवान (बच्चेवाले) हैं उन्हें खाना चाहिए क्यों ? कि शास्त्र की आज्ञा है ।
सूर्यनारायण से क्या माँगें ?
तुलसीदासजी जैसे महान संत ने भी सूर्यनारायण की स्तुति करके बहुत फायदा लिया । संत तुलसीदासजी ने जो स्तुति गायी है वह विनय पत्रिका में है :
दीन-दयालु दिवाकर देवा ।
कर मुनि, मनुज, सुरासुर सेवा ।।
‘हे दीनदयालु सूर्यनारायण ! मुनि, मनुष्य, देवता और राक्षस सभी आपकी सेवा करते हैं ।’
बेद-पुरान प्रगट जस जागै ।
तुलसी राम-भगति बर माँगै ।।
‘वेद-पुराणों में आपकी कीर्ति जगमगा रही है । तुलसीदास आपसे भगवान की भक्ति का वरदान माँगता है ।’
मैं आपको सलाह देता हूँ कि मकर संक्रांति की सुबह सूर्यनारायण को मन-ही-मन प्रार्थना करके कह देना कि ‘संत तुलसीदासजी ने जो माँगा है न महाराज ! हमारी बुद्धि में, हमारी मति-गति में वही धर दीजिये ।’
तो हम भी इस पर्व पर सूर्यनारायण को वंदन-प्रणाम करें । इस तपस्या के दिन कोई रुपया-पैसा तो कोई आरोग्य माँगता है लेकिन हम अगर माँगें तो ऐसा माँगें कि माँगने की कोई वासना ही न रहे, हम भगवत्पद माँगें, भगवान को ही माँगें, भगवान की दृढ़ भक्ति माँगें तो सब हो गया ।
विशेष करणीय प्रयोग
इस दिन तिल खाना, तिल और गोबर के उबटन से नहाना ज्यादा हितकारी, पुण्यदायी माना गया है । जो इस पर्व पर पुण्यदान, स्नान आदि नहीं करते हैं वे 7 जन्मों तक रोगी और निर्धन रहते हैं ।
प्रार्थना, संकल्प करें कि ‘प्रभो ! जैसे सूर्यनारायण उत्तर की ओर गति करते हैं और सूर्यप्रकाश बढ़ता जाता है ऐसे ही हमसे पहले जो कुछ हो गया अंधकार, अज्ञान के प्रभाव में आ के वह आप माफ कर दो, अब हम प्रकाश की ओर चलेंगे, समझदारी से चलेंगे ।’
उत्तरायण के दिन कुछ जगहों पर ऐसी प्रथा है कि बहुएँ अपने सासु-ससुरे को रिझाने के लिए लग जाती हैं । सासु-ससुरा झूठमूठ में ऊहूँ... करते जायें और वे रिझाती जायें । ऐसा करते-करते भी सासु-ससुरे की सेवा का सद्गुण खिल जाय और सासु-ससुरा व बहू-बेटों में भी पवित्र भाव आ जाय । यह उत्तरायण पर्व का कितना सुंदर प्रयोग है ! कैसी है ऋषि-मुनियों की, भारतीय संस्कृति की व्यवस्था !
अपनी बुद्धि भगवान से जोड़ दो
उत्तरायण भीष्मजी के जीवन से सीख लेकर अपने जीवन को उन्नत करने की प्रेरणा देता है । भीष्मजी ने अपनी मति से देह की सत्यता तोड़ दी थी और श्रीकृष्ण से प्रीति जोड़ रखी थी तो भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्यारे भीष्मजी की प्रतिज्ञा को सत्य रखने के लिए अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी और भीष्मजी से अपना नाता जोड़ के दिखा दिया ।
आप जितने उस परमात्मा के होते हो वह कई गुना आपका हो जाता है । भीष्मजी कहते हैं : ‘‘श्रीकृष्ण ! मैं अपनी कन्या आपको अर्पण करना चाहता हूँ ।’’
अब इतने वयोवृद्ध ब्रह्मचारी कहाँ से, कौन-सी कन्या लायेंगे ? बोले : ‘‘मेरी बुद्धिरूपी जो कन्या है वह मैं आपको अर्पित करता हूँ ।’’
तो बुद्धि भगवान से जोड़ दो । प्रभात को उठो, थोड़ा शांत हो जाओ फिर चिंतन करो : ‘बुद्धि में प्रकाश तेरा है, हम तेरे प्रकाश में जियें । शरीर मेरा नहीं और संबंध मेरे नहीं । मैं तेरा, तू मेरा...’
इस प्रकार मकर संक्रांति का आप फायदा उठाओ ।               
REF: ISSUE372-DECEMBER-2024