Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

श्राद्ध : एक पुण्यदायी, भगवदीय कर्म

गरुड़ पुराण (10.57-59) में आता है कि समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता ।

...आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम् ।।

पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात् ।...

पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशुधन, सुख, धन और धान्य प्राप्त करता है ।

देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्त्व है । देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है ।

जो लोग श्राद्ध नहीं करते उनके पितर असंतुष्ट रहते हैं तथा उनके घर में सुख-शांति व समृद्धि की कमी, बीमारियाँ - यह सब होता है । इसलिए अच्छी संतान व स्वास्थ्य के लिए भी पितृ-श्राद्ध करना चाहिए । जो श्राद्ध करता है और दूसरों की भलाई करता है उसको दूसरे लोग कुछ देते हैं तो देनेवाले को पुण्य हो जाता है, आनंद हो जाता है ।

श्राद्ध में जब तुलसी के पत्तों का उपयोग होता है तो पितर तृप्त रहते हैं और विष्णुलोक को चले जाते हैं । बड़े तृप्त होते हैं तो बड़ा आशीर्वाद ! मैं तो तुलसी के प्रयोग से ही श्राद्ध करता हूँ ।

श्राद्ध में उत्तम क्या ?

तीन चीजें श्राद्ध में प्रशंसनीय हैं :

(1) शुद्धि

(2) अक्रोध

(3) अत्वरितता : जल्दबाजी नहीं, धैर्य ।

तीन चीजें श्राद्ध में पवित्र होती हैं :

(1) तिल

(2) बेटी का बेटा - दौहित्र

(3) कुतपकाल

दोपहर 11:36 से लेकर 12:24 तक विशेषकाल माना जाता है । थोड़ा आगे-पीछे हो जाय तो कोई बात नहीं लेकिन इस काल में श्राद्ध की विशेष पवित्रता होती है । श्राद्ध करने के आरम्भ और अंत में इस श्लोक का तीन बार उच्चारण करने से श्राद्ध की त्रुटि क्षम्य हो जाती है, पितर प्रसन्न हो जाते हैं और आसुरी शक्तियाँ भाग जाती हैं :

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।

नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत ।।

समस्त देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा एवं स्वाहा - सबको हम नमस्कार करते हैं । ये सब नित्य (शाश्वत) फल प्रदान करनेवाले हैं ।                          

(वायु पुराण : 74.16)

श्राद्ध में आवश्यक सात शुद्धियाँ

श्राद्धकाल में सात विशेष शुद्धियों का ध्यान रखना चाहिए :

(1) नहा-धोकर शरीर शुद्ध हो ।

(2) श्राद्ध की द्रव्य-वस्तु शुद्ध हो ।

(3) स्त्री शुद्ध हो, मासिक धर्म में न हो ।

(4) जहाँ श्राद्ध करते हैं वह भूमि शुद्ध हो । गोझरण से, देशी गाय के गोबर से लीपन की हुई हो ।

(5) मंत्र का शुद्ध उच्चारण करें ।

(6) ब्राह्मण भी शुद्ध भाववाला हो और तम्बाकू, जर्दा आदि का सेवन न करता हो ।

(7) मन को भी शुद्ध रखें ।

पितरों की विशेष प्रसन्नता प्रदायक : भगवन्नाम संकीर्तन

पितरों की सद्गति के लिए कीर्तन भी एक उपाय है । उनको प्रार्थना करें कि हे पितृदेवो ! हम और कुछ नहीं कर सकते तो आपके लिए भगवान के नाम का कीर्तन करते हैं । आपको भगवान तृप्त करेंगे, आप अभी से ही तृप्त हों क्योंकि भगवान का नाम तो तुरंत तृप्ति पहुँचाता है ।इसके बाद पितरों को प्रसन्न करने के लिए कीर्तन करो । पितरों की तृप्ति के लिए 2 या 1 दिन की अखंड नामधुन (भगवन्नाम संकीर्तन) अथवा 6 घंटे का कीर्तन रखो । यदि 6 घंटे न कर सको तो 2-3 घंटे ही कीर्तन करो । इससे उनका भी भला होगा, आप भी तृप्त हो जायेंगे, अड़ोस-पड़ोस भी तृप्त हो जायेगा । भगवान का नाम तृप्ति देता है ।

श्राद्ध से सद्गति

जिनको जीवन में श्राद्ध का महत्त्व नहीं पता, वे लोग बड़े घाटे में रहते हैं । हनुमानप्रसाद पोद्दार, गीताप्रेस-गोरखपुर के जाने-माने सज्जन संत एक बार मुंबई में रात्रि को समुद्र किनारे बैठे थे । उनके सामने आकर एक पारसी सज्जन (प्रेत) ने प्रार्थना की कि हम जाति के पारसी थे इसलिए घरवालों ने श्राद्ध नहीं किया । मेरी रूह (आत्मा) भटक रही है । आप मेरा श्राद्ध करायें तो मेरी सद्गति होगी ।

हनुमानप्रसाद पोद्दार ने उनका श्राद्ध कराया । दूसरे दिन उस पारसी का जीवात्मा सपने में बड़ा प्रसन्न होकर उनका अभिवादन कर रहा था कि अब मैं ऊँची यात्रा कर रहा हूँ । मेरी सद्गति हो गयी, नहीं तो मैं भटक रहा था ।

महर्षि जाबालि ने कहा है : ‘‘श्राद्ध से पुत्र, आयु-आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य, यश और अभिलाषित वस्तुओं की प्राप्ति होती है ।’’ क्योंकि पितरों का तर्पण-श्राद्ध करने से उन्हें तृप्ति होती है तो उनके तृप्त हृदय से अंतर्यामी प्रभु जो आपके हृदय में भी बैठे हैं, वे आपको शुभ संकल्प से सम्पन्न करते हैं । अतः जो श्राद्ध करते हैं, पितरों को कुछ तर्पण करते हैं, पिंडदान आदि करते हैं उन्हें दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग आदि की प्राप्ति, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, सुख, साधन तथा धन-धान्य आदि की कमी नहीं रहती ।

सर्वपित्री अमावस्या पर सामूहिक श्राद्धका आयोजन

जिन्हें अपने पूर्वजों की परलोकगमन की तिथियाँ मालूम नहीं हैं, उन्हें सर्वपित्री अमावस्या (6 अक्टूबर) के दिन श्राद्ध-कर्म करना चाहिए । विभिन्न संत श्री आशारामजी आश्रमों में इस दिन सामूहिक श्राद्धका आयोजन होता है, जिसमें आप सहभागी हो सकते हैं । इस हेतु अपने नजदीकी आश्रम में पंजीकरण करा लें ।

श्राद्ध हेतु अपने साथ दो बड़ी थाली, दो कटोरी, दो चम्मच, ताँबे का एक लोटा और आसन लेकर आयें । अन्य आवश्यक सामग्री श्राद्ध-स्थल पर उपलब्ध रहेगी । श्राद्धकर्म सम्पन्न होने के बाद लाये हुए बर्तन सब वापस ले जाने हैं । अधिक जानकारी हेतु पहले ही अपने नजदीकी आश्रम से सम्पर्क कर लें ।

(श्राद्ध से संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु आश्रम की पुस्तक श्राद्ध महिमापढ़ें ।)

- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

Ref: ISSUE260-AUGUST-2014