Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

जीवन में जगाती प्रह्लाद-सा आह्लाद : होली

(होली : 28 मार्च)

संस्कृत में संधिकाल को पर्व बोलते हैं । जैसे सर्दी पूरी हुई और गर्मी शुरू होने की अवस्था संधिकाल है । होली का पर्व इस संधिकाल में आता है । वसंत की जवानी (मध्यावस्था) में होली आती है, उल्लास लाती है, आनंद लाती है । नीरसता दूर करती है और उच्चतर दायित्व निर्वाह करने की प्रेरणा देती है ।

होली बहुत प्राचीन उत्सव है, त्यौहार है । इसमें आह्लाद भी है, वसंत ऋतु की मादकता भी है, आलस्य की प्रधानता भी है और कूद-फाँद भी है । यह होलिकोत्सव का प्रह्लाद जैसा आह्लाद, आनंद, पलाश के फूलों का रंग और उसमें ॐ... ॐ... का जप तुम्हारे जीवन में भी प्रह्लाद का आह्लाद लायेगा ।

प्रह्लाद हो जीवन का आदर्श

जिसने पूरे जगत को आनंदित-आह्लादित करनेवाला ज्ञान और प्रेम अपने हृदय में सँजोया है, उसे प्रह्लादकहते हैं । जिसकी आँखों से परमात्म-प्रेम छलके, जिसकी वाणी से परमात्म-माधुर्य छलके, जिसके जीवन से परमात्म-रस छलके उसीका नाम है प्रह्लाद। मैं चाहता हूँ कि आपके जीवन में भी प्रह्लाद आये ।

देवताओं की सभा में प्रश्न उठा : ‘‘सदा नित्य नवीन रस में कौन रहता है ? कौन ऐसा है जो सुख-दुःख को सपना और भगवान को अपना समझता है ? ‘सब वासुदेव की लीला है’ - ऐसा समझकर तृप्त रहता है, ऐसा कौन पुण्यात्मा है धरती पर ?’’

बोले : ‘‘प्रह्लाद !’’

‘‘प्रह्लाद को ऐसा ऊँचा दर्जा किसने दिया ?’’

‘‘सत्संग ने । सत्संग द्वारा बुद्धि विवेक पाती है और गुरुज्ञानरूपी रंग से रँगकर सत्य में प्रतिष्ठित हो जाती है ।’’

 आप भी प्रह्लाद की तरह पहुँच जाइये किन्हीं ऐसे संत-महापुरुष की शरण में जिन्होंने अपनी चुनरी को परमात्म-ज्ञानरूपी रंग से रँगा है और रँग जाइये उनके रंग में ।

धुलेंडी का उद्देश्य

होेली में नृत्य भी होता है, हास्य भी होता है, उल्लास भी होता है और आह्लाद भी होता है लेकिन उल्लास, आनंद, नृत्य को प्रेमिका-प्रेमी सत्यानाश की तरफ ले जायें अथवा धुलेंडी के दिन एक-दूसरे पर धूल डालें, कीचड़ उछालें, भाँग पियें - यह होली की विकृति हैŸ। यह उत्सव तो धूल में गिरा, विकारों में गिरा हुआ जीवन सत्संगरूपी रंग की चमक से चमकाने के लिए है । जो विकारों में, वासनाओं में, रोगों में, शोकों में, धूल में मिल रहा था, उस जीवन को सत्संग में, ध्यान में और पलाश के फूलों के रंग से रँगकर सप्तधातु, सप्तरंग संतुलित करके ओज-बल, वीर्य और आत्मवैभव जगाने के लिए धुलेंडी का उत्सव है ।

पलाश के फूलों से खेलें होली

होली में जहरीले रासायनिक रंगों से अपनी आँखों को, त्वचा और मुँह को बचाकर पलाश के पुष्पों के रंग से अपनी त्वचा को थोड़ा रँगें, जिससे शरीर की सप्तधातुओं व सप्तरंगों का संतुलन सुंदर बना रहे । पलाश के फूलों का रंग होली के बाद पड़नेवाली सूर्य की तीखी किरणों को झेलने की शक्ति देता है । शरीर में छुपी पित्तजन्य, वायुजन्य तकलीफों को दूर कर रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है । होलिका की 3 या 5 प्रदक्षिणाएँ करने से शरीर को गर्मी मिलती है, जिससे ट्यूमर के अंश जो रक्तसंचार में अवरोध पैदा करेंगे या कैंसर बनायेंगे अथवा कफ का जो गाढ़ापन है, वह पिघलेगा और खाँसी द्वारा बाहर निकलेगा ।

होली के बाद स्वास्थ्य-व्रत

रघु राजा, प्रह्लाद, हिरण्यकशिपु के साथ-साथ ऋतु-परिवर्तन से भी होली का सीधा संबंध है । तुम्हारे अंदर जो आलस्य अथवा जो कफ जमा है, उसको कूद-फाँद करके रास्ता देने के लिए होली है । इस उत्सव में कूद-फाँद नहीं करें तो आलसी और नीरस बन जाते हैं ।

होली के बाद 20 दिन तक नमक कम खाऊँगा । 20-25 नीम के पत्ते 2-3 काली मिर्च के साथ खाऊँगा ।’ - यह आरोग्य के लिए व्रत है । संसार-व्यवहार में थोड़ा संयम करूँगा, पति-पत्नी के संबंध में ब्रह्मचर्य पालूँगा ।’ - यह दीर्घ जीवन के लिए व्रत है । इन दिनों में भुने हुए चने - होलाका सेवन शरीर से वात, कफ आदि दोषों का शमन करता है । होली के बाद खजूर न खायें ।

शरीर स्वस्थ रहे इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है मन स्वस्थ रखना, ‘स्वमें स्थित रखना । मन को अपने मूल स्वभाव में ले जाओ । जैसे तरंग का मूल स्वभाव पानी है, ऐसे मन का मूल स्वभाव परमात्म-शांति, परमात्म-प्रेम व परमात्मा की आवश्यकता है ।

आध्यात्मिक होली के रंग रँगें

होली हुई तब जानिये, पिचकारी गुरुज्ञान की लगे ।

सब रंग कच्चे जाँय उड़, एक रंग पक्के में रँगे 

पक्का रंग क्या है ? पक्का रंग है हम आत्मा हैंऔर हम दुःखी हैं, हम सुखी हैं, हम अमुक जाति के हैं...’ - यह सब कच्चा रंग है । यह मन पर लगता है लेकिन इसको जाननेवाले साक्षी चैतन्य का पक्का रंग है । एक बार उस रंग में रँग गये तो फिर विषयों का रंग जीव पर कतई नहीं चढ़ सकता ।

सर्वकल्याण की भावना व परमेश्वर में दृढ़ निष्ठा रखने से जीवन में अनेक बार मृत्यु के प्रसंग आने पर भी प्रह्लाद उनसे बच जाता था । यहाँ तक कि अग्नि द्वारा न जलाये जाने का वरदान प्राप्त करनेवाली होलिका ने उसे अग्नि में जलाने का यत्न किया पर सत्य एवं दृढ़ निष्ठा का प्रतिरूप वह भक्तराज बच गया और छल-कपट, ईर्ष्या, वैर आदि आसुरी वृत्तियों की प्रतीक होलिका जलकर राख हो गयी Ÿ

तो आप भी काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या आदि आसुरी सम्पदा के गुणों को जलाकर अपने जीवन में भगवत्प्रेम, धैर्य, सहिष्णुता, निर्भयता आदि दैवी सम्पदा के गुणों को भरिये और प्रह्लाद की नाईं विघ्न-बाधाओं के बीच भी भगवद्-निष्ठा टिकाये रखते हुए भवसागर से पार हो जाइये । आपकी होली मंगलमय होली हो जाय...

होली का पावन संदेश

यह होली का त्यौहार हास्य-विनोद करके छुपे हुए आनंद-स्वभाव को जगाने के लिए है । जो हो गया - हो... ली... बीत गया सो बीत गया । उससे द्वेष मत करो, राग मत करो, उसका ज्यादा चिंतन मत करो । बीत गया न, भूतकाल है । भविष्य का भय मत करो । वर्तमान में कहीं फँसो नहीं, आसक्ति करो नहीं । अपने दिल को प्रह्लाद की नाईं रसमय बना दो ।

करोगे न हिम्मत ! उठो, चल पड़ो आत्मसाक्षात्कार की ओर... संत-महापुरुष की शरण जाकर उनके साथ होली खेलो । उनके रंग में रँग जाओ तो तुम्हारी एक क्षण की होली भी तुम्हें महान एवं अमर बना देगी ।

विशेष : होली की रात्रि चार पुण्यप्रद महारात्रियों में आती है । होली की रात को जागरण व जप करने से मंत्र की सिद्धि होती है ।       

 

- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू