Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

महापुरुषों की सरल युक्ति, खोले जटिल-से-जटिल गुत्थी

 (भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज महानिर्वाण दिवस : 23 नवम्बर)

एक घटना मेरे गुरुदेव के साथ परदेश में घटी थी । हवाई अड्डे पर गुरुदेव को लेने के लिए बड़ी-बड़ी हस्तियाँ आयी थीं । कई लोग अपनी बड़ी-बड़ी आलीशान गाड़ियों में गुरुदेव को बैठाने के लिए उत्सुक थे । एक-दो अगुआओं के कहने से और सब तो मान गये लेकिन दो भक्त हठ पर उतर गये : ‘‘गुरुदेव बैठेंगे तो मेरी ही गाड़ी में ।’’

एक ने कहा : ‘‘यदि पूज्य गुरुदेव मेरी गाड़ी में नहीं बैठेंगे तो मैं गाड़ी के नीचे सो जाऊँगा ।’’

दूसरे ने कहा : ‘‘मेरी गाड़ी में नहीं बैठेंगे तो मैं जीवित न रहूँगा ।’’

ऐसी परिस्थिति में क्या करें, क्या न करें यह किसीकी समझ में नहीं आ रहा था । दोनों बड़ी हस्तियाँ थीं, अहं का दायरा भी बड़ा था । दोनों में से किसीको भी बुरा न लगे - ऐसा सभी भक्त चाहते थे ।

इतने में तो मेरे गुरुदेव का हवाई जहाज हवाई अड्डे पर आ गया । साँईं बाहर आये तब समितिवालों ने भव्य स्वागत करके खूब नम्रता से परिस्थिति से अवगत कराया ।

ऐसे ब्रह्मवेत्ता महापुरुष कभी-कभी ही परदेश पधारते हैं अतः स्वाभाविक है कि प्रत्येक व्यक्ति निकट का सान्निध्य प्राप्त करने का प्रयत्न करे । प्रेम से प्रयत्न करना अलग बात है एवं नासमझ की तरह जिद करना अलग बात है । संत तो प्रेम से वश हो जाते हैं जबकि जिद के साथ नासमझी उपरामता ले आती है ।

लोगों ने कहा : ‘‘दोनों के पास एक-दूसरे से टक्कर लें ऐसी गाड़ियाँ एवं निवास हैं । बहुत समझाया पर मानते नहीं हैं । अब आप ही इसका हल बताने की कृपा करें । हमें कुछ सूझता नहीं है ।’’

पूज्य गुरुदेव बड़ी सरलता एवं सहजता से बोले : ‘‘भाई ! इसमें परेशान होने जैसी बात ही कहाँ है ? सीधी बात है और सरल हल है । जिसकी गाड़ी में बैठूँगा उसके घर नहीं जाऊँगा और जिसके घर जाऊँगा उसकी गाड़ी में नहीं बैठूँगा । अब निश्चय कर लो ।’’

इस जटिल गुत्थी का हल गुरुदेव ने चुटकी बजाते ही कर दिया कि एक की गाड़ी, दूसरे का घर ।

दोनों साँईं के आगे हाथ जोड़कर खड़े हो गये : ‘‘गुरुदेव ! आप जिस गाड़ी में बैठना चाहते हैं उसीमें बैठें । आपकी मर्जी के अनुसार ही होने दें ।’’

थोड़ी देर पहले तो हठ पर उतरे थे परंतु संत के व्यवहार-कुशलतापूर्ण हल से दोनों ने जिद छोड़कर निर्णय भी संत की मर्जी पर ही छोड़ दिया ! प्राणिमात्र के परम हितैषी संतजनों द्वारा सदैव सर्व का हित ही होता है ।

ब्रहम गिआनी ते कछु बुरा न भइआ ।

(ब्रह्मज्ञानी ते कछु बुरा न भया ।)