रणवीर सिंहजी चौधरी पूज्य बापूजी के और भी कुछ रोचक, विस्मयकारी व प्रेरणाप्रद जीवन-प्रसंग बताते हैं :
उनका ‘न’ करना भी कितना कल्याणकारी था !
1997 के आसपास की बात है । खंडवा में आश्रम-निर्माण हेतु हमने नक्शा तैयार किया । हम चाहते थे कि पूज्यश्री की अनुमति लेकर काम आगे बढ़ाया जाय । उस समय पूज्य बापूजी सत्संग-समारोह के निमित्त सलूम्बर (राज.) पधारे थे । हम 2 भाई गुरुदेव को नक्शा दिखाने हेतु वहाँ गये । हमने नक्शा दिखाया तो गुरुदेव उसे लगभग 5 मिनट तक चारों तरफ घुमाते हुए देखते रहे और बोले : ‘‘नहीं-नहीं... अभी कुछ नहीं बनाना ।’’
हमने फिर से निवेदन किया : ‘‘बापूजी ! हमारी पूरी तैयारी है । अभी केवल कुटिया बना लेते हैं ।’’
‘‘नहीं, अभी कुछ नहीं बनाना है ।’’
3-4 महीने के बाद हम नक्शे की फाइल लेकर पुनः पूज्यश्री के चरणों में पहुँचे । बैग से फाइल निकालने से पहले ही गुरुदेव बोले : ‘‘अभी ठहरो ।’’
औरंगाबाद (महा.), अहमदाबाद, वडोदरा... जहाँ भी हम पूनम-दर्शन हेतु जाते थे वहाँ नक्शे की फाइल साथ में रखते थे । जब फाइल बैग में रहती थी तो बापूजी इशारा करके दूर से ही मना कर देते थे और जब फाइल साथ में नहीं होती तब बातचीत करते, प्रसाद देते थे । ऐसा करीब 2 वर्षों तक चला ।
कुछ दिनों बाद हमको पता चला कि जमीन में कुछ समस्या है । हमने उसे ठीक करवा लिया ।
अगस्त 2000 के आसपास बापूजी उज्जैन पधारे थे । हम फिर से फाइल लेकर वहाँ पहुँचे । मन में वही डर था कि ‘कहीं आज भी गुरुदेव दूर से ही मना न कर दें ।’ लेकिन उस दिन बड़े आश्चर्य की बात हुई कि फाइल बैग में रखी होने पर भी जैसे ही गुरुदेव की हम पर दृष्टि पड़ी तो बोले : ‘‘जल्दी आओ, क्या बात है बताओ ।’’
गुरुदेव ने नक्शा देखा और आश्रम-निर्माण की सहमति देते हुए कुटिया, सत्संग-भवन, बड़ बादशाह, साधक-निवास के नक्शे पर अपने करकमलों से निशान लगाया और बोले : ‘‘सब ठीक है, बनाओ । मेरी कुटिया पर ज्यादा खर्च नहीं करना ।’’ हम सबको गुरुदेव ने प्रसाद भी दिया ।
हमें बड़ी खुशी हुई, साथ ही हमारा हृदय गद्गद हो गया कि कैसी है गुरुदेव की त्रिकालज्ञता और उनकी कल्याणकारी अनुकम्पा ! गुरुदेव द्वारा पूर्व में आश्रम बनाने की अनुमति न मिलना भी कितना कल्याणकारी था !
गुरुसेवा और प्रसाद का चमत्कार !
2001 में मुझे पीलिया हो गया था । डॉक्टरों ने बोला कि ‘‘तुमको बेड रेस्ट करना होगा, नहीं तो स्वास्थ्य और भी बिगड़ सकता है । ठीक होने में कम-से-कम एक माह लगेगा ।’’
एक महत्त्वपूर्ण सेवा के लिए मुझे बरेली जाना था । मैंने सब बापूजी के ऊपर छोड़ दिया और वहाँ जाकर सेवा में लग गया । गुरुसेवा से मेरे स्वास्थ्य में सुधार होने लगा । सेवा पूरी करके घर वापस आया और जाँच करवायी तो रिपोर्ट नॉर्मल आयी । रिपोर्ट देखकर डॉक्टर बोले : ‘‘यह दिखा रही है कि आपने रेस्ट अच्छी तरह से किया है, आपका पीलिया ठीक हो गया है ।’’ लेकिन सच्ची बात तो यह थी कि मैं एक महीने तक तो लगातार सेवा में ही था । पीलिया तो ठीक हो गया था लेकिन कमजोरी थी, जिसकी दवाई डॉक्टरों ने मुझे दी । इसी बीच मुझे पता चला कि पूज्य बापूजी का सत्संग पुष्कर में है तो मैं वहाँ पहुँच गया । मैं पंडाल में बैठा था । पहले तो गुरुदेव ने सत्संग किया फिर घूम-घूम के सबको प्रसाद देने लगे । बापूजी ने एक आम मेरी तरफ फेंका जो सीधा आकर मेरे यकृत (Liver) की जगह लगा । डॉक्टरों ने पथ्य-पालन में पीली चीजें, आम आदि खाने को मना किया था तो मैंने आम बैग में रख लिया । कुछ देर बाद फिर से बापूजी ने एक आम फेंका । वह मेरे को लगा और फट गया । मैंने उसे वहीं पर खा लिया ।
गुरुदेव के प्रसाद का ऐसा चमत्कार हुआ कि उस दिन के बाद मेरी कमजोरी भी दूर हो गयी और कोई दवाई लेने की भी आवश्यकता नहीं पड़ी । सत्संग के लिए आते समय तो कमजोरी के कारण रास्ते में 4 जगह बैठना पड़ा था लेकिन जाते समय एक बार भी नहीं बैठा ।
कैसा है गुरुदेव की सेवा व सत्संग-दर्शन का प्रभाव ! पूज्य बापूजी जैसे ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों का सत्संग-दर्शन, प्रसाद-वितरण, चलना-फिरना... हर चेष्टा भक्तों का दुःख, पाप-ताप हरकर उन्हें आत्मिक आनंद, शांति, ज्ञान और भक्ति देने के लिए ही होती है ।
सबकी पुकार सुनते, जप, सत्संग व ईश्वर में प्रीति बढ़ाते
बहादुरगढ़ (हरियाणा) निवासी एवं संत श्री आशारामजी गुरुकुल केन्द्रीय प्रबंधन समिति की संचालिका सुशीला बबेरवाल, जिन्हें 1996 से पूज्य बापूजी के दर्शन-सत्संग का लाभ मिलता रहा है और जो वर्तमान में संत श्री आशारामजी महिला उत्थान आश्रम (सती अनसूया आश्रम), अहमदाबाद में रहते हुए अपना जीवन सेवा-साधनामय बना के धन्य कर रही हैं, वे पूज्य बापूजी के कुछ मधुर संस्मरण बताते हुए कहती हैं :
इतने छोटे बच्चे की बात भी सुनते हैं
1998 की बात है । श्रीगंगानगर (राज.) में पूज्य बापूजी का 5 दिन का सत्संग-समारोह था । मैं माता-पिता के साथ वहाँ गयी थी । मुझे इन चीजों में ज्यादा रुचि नहीं थी । मेरी माँ ने मुझे दीक्षा लेनेवाले बच्चों के बीच बिठा दिया । बापूजी ने सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा दी, फिर व्यासपीठ से नीचे आकर बच्चों के बीच आ गये । मुझसे पूछा : ‘‘दीक्षा के सामान में क्या-क्या मिला है ?’’
मैंने दीक्षा की किट बापूजी को दे दी । पूज्यश्री ने उसमें रखी पुस्तकें देखीं और उनमें से दो पुस्तकों के नाम लेकर कहा : ‘‘बच्चों के लिए इन 2 पुस्तकों की कोई आवश्यकता नहीं है । सभी बच्चे ऐसा करना कि ये 2 पुस्तकें स्टॉल पर वापस कर देना ।’’
इतने में मेरे पास में बैठा हुआ एक 6-7 साल का बच्चा बापूजी को बोला : ‘‘बापूजी ! हमारे पैसे ?’’
गुरुदेव ने फिर कॉर्डलेस माइक ऑन किया और बोले : ‘‘स्टॉलवाले ! सुन रहे हो ? बच्चे पुस्तकें वापस करने आयेंगे तो उनके पैसे वापस कर देना ।’’ पूज्यश्री ने यही बात पुनः दोहराई फिर उस बच्चे को बोले : ‘‘अब तो ठीक है न !’’
वह बच्चा खुश होते हुए बोला : ‘‘जी, बापूजी !’’ यह सब देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा कि ‘बापूजी इतने छोटे बच्चे की बात भी सुनते हैं ।’
मैंने पूछा : ‘‘बापूजी ! मेरी माँ ने मुझे गुरुमंत्र व सारस्वत्य मंत्र - दोनों लेने को बोला है । दोनों मंत्र लूँगी तो कितनी-कितनी माला करनी पड़ेंगी ?’’
वैसे तो बापूजी दीक्षा के समय सबको प्रतिदिन कम-से-कम 10 माला करने को बोलते हैं लेकिन मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए गुरुदेव बोले : ‘‘अच्छा, दोनों मंत्र लेगी ? 10 माला गुरुमंत्र की करना और 5 माला सारस्वत्य मंत्र की करना ।’’ यह सुनकर मुझे बड़ी राहत मिली ।
बापूजी ने आकाश की तरफ देखा और बोले : ‘‘तू अहमदाबाद आना, मैं तुझे तैरना सिखा दूँगा ।’’ उस समय तो इसका अर्थ समझ में नहीं आया । मैंने सोचा कि ‘बापूजी पानी में तैरने की बात कर रहे हैं ।’ इतने में पूज्यश्री पीछे मुड़े और बोले : ‘‘वहाँ महिला आश्रम में स्विमिंग पूल भी है, उसमें भी तैरना सीख लेना ।’’
अब आश्रम आने के बाद सत्संग सुनकर बापूजी के उस वाक्य का अर्थ समझ में आ रहा है कि तैरना मतलब जन्म-मरण के भवसागर से पार होना होता है ।
विलक्षण ढंग से बढ़ायी जप, सत्संग व ईश्वर में प्रीति
दीक्षा लेने के बाद शुरुआत के दिनों में मुझे माला करना कठिन लगता था । माँ बोलती थी कि ‘‘जब तक नियम पूरा नहीं करेगी तब तक भोजन नहीं मिलेगा ।’’
एक दिन मैंने 1-2 माला की और भोजन माँगा तो माँ ने मना कर दिया । मैं पूजाघर में जाकर बापूजी के श्रीचित्र के सामने रोने लगी । रोते-रोते मुझे वहीं नींद आ गयी । मुझे बड़ा ही विलक्षण स्वप्न आया । पहली बार मेरे सपने में बापूजी आये और मुझे कई दिव्य लोकों के दर्शन कराये । जिनका वर्णन नहीं कर सकते ऐसे-ऐसे अलौकिक दृश्य दिखाये । एक जगह गये तो वहाँ बहुत सारे देवी-देवता बैठे थे । सरस्वती माँ प्रवचन कर रही थीं । बापूजी को देखते ही सब खड़े हो गये । फिर पूज्यश्री का सत्संग शुरू हुआ : ‘‘देखो, मनुष्य-जन्म बड़ा अनमोल होता है । मोक्ष के इच्छुक देवी-देवता भी इस जन्म के लिए तरसते हैं क्योंकि मनुष्य-जन्म ही है जिसमें हम ईश्वर को पा सकते हैं ।’’
फिर मेरी तरफ देखते हुए गुरुदेव बोले : ‘‘देख, तेरे को तो मनुष्य-जन्म मिल गया है । क्या तुझे पता है कि ईश्वर की भक्ति कैसे होती है ? ईश्वर का नाम जपना होता है । जब हम भगवन्नाम जपते हैं तो भगवान में हमारी रुचि बढ़ती है, प्रीति बढ़ती है, धीरे-धीरे भगवान से प्रेम होता है और फिर हम भव से पार हो जाते हैं ।’’
फिर बापूजी ने सबको अपनी-अपनी माला निकालकर एक साथ जप करने को कहा । सब देवी-देवताओं ने भी जप करना शुरू कर दिया । बापूजी भी माला से जप करने लगे । फिर भी मैं माला नहीं कर रही थी तो गुरुदेव बोले : ‘‘अरे तू भी जप कर न !’’ तब मैंने भी जप करना शुरू किया । 5-6 दिन तक यही सिलसिला चलता रहा । बापूजी सपने में आकर दर्शन देते और माला करने के लिए प्रेरित करते । इस प्रकार बड़े ही विलक्षण ढंग से पूज्यश्री ने मुझे जप करना सिखाया और धीरे-धीरे सत्संग में, ईश्वर में मेरी प्रीति, रस बढ़ाते गये ।
*RP-ISSUE327-MARCH-2020