Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

आँधी-तूफान सह के भी वे पुण्यात्मा सेवा करते हैं

तुम्हारे साथ यह संसार कुछ अन्याय करता है, तुमको बदनाम करता है, निंदा करता है तो यह संसार की पुरानी रीत है । हीनवृत्ति, कुप्रचार, निंदाखोरी यह आजकल की ही बात नहीं है लेकिन कुप्रचार के युग में सुप्रचार करने का साहस लल्लू-पंजू का नहीं होता है । महात्मा बुद्ध के सेवकों का नाम सुनकर लोग उन्हें पत्थर मारते थे फिर भी बुद्ध के सेवकों ने बुद्ध के विचारों का प्रचार किया ।

महात्मा बुद्ध से एक भिक्षुक ने प्रार्थना की : ‘‘भंते ! मुझे आज्ञा दें, मैं सभाएँ करूँगा । आपके विचारों का प्रचार करूँगा ।’’

‘‘मेरे विचारों का प्रचार ?’’

‘‘हाँ भगवन् !’’

‘‘लोग तेरी निंदा करेंगे, गालियाँ देंगे ।’’

‘‘कोई हर्ज नहीं । मैं भगवान को धन्यवाद दूँगा कि ये लोग कितने अच्छे हैं ! ये केवल शब्द-प्रहार करते हैं, मुझे पीटते तो नहीं !’’

‘‘लोग तुझे पीटेंगे भी, तो क्या करेगा ?’’

‘‘प्रभो ! मैं शुक्र गुजारूँगा कि ये लोग हाथों से पीटते हैं, पत्थर तो नहीं मारते !’’

‘‘लोग पत्थर भी मारेंगे और सिर भी फोड़ देंगे तो क्या करेगा ?’’

‘‘फिर भी मैं आश्वस्त रहूँगा और आपका दिव्य कार्य करता रहूँगा क्योंकि वे लोग मेरा सिर फोड़ेंगे लेकिन प्राण तो नहीं लेंगे !’’

‘‘लोग जुनून में आकर तुझे मार देंगे तो क्या करेगा ?’’

‘‘भंते ! आपके दिव्य विचारों का प्रचार करते-करते मैं मर भी गया तो समझूँगा कि मेरा जीवन सफल हो गया ।’’

उस कृतनिश्चयी भिक्षुक की दृढ़ निष्ठा देखकर महात्मा बुद्ध प्रसन्न हो उठे । उस पर उनकी करुणा बरस पड़ी । ऐसे शिष्य जब बुद्ध का प्रचार करने निकल पड़े तब कुप्रचार करनेवाले धीरे-धीरे शांत हो गये ।

ऐसे ही मेरे ऐसे लाड़ले-लाड़लियाँ, शिष्य-शिष्याएँ हैं कि घर-घर जाकर ‘ऋषि प्रसाद’, ‘ऋषि दर्शन’ के सदस्य बनाते हैं । आपको भी सदस्य बनाने का कोई अवसर मिले तो चूकना नहीं । लोगों को भगवान और संत-वाणी से जोड़ना यह अपने-आपमें बड़ी भारी सेवा है ।

संत और संत के सेवकों को सतानेवालों को प्रकृति अपने ढंग से यातना देती है और संत की सेवा, समाज की सेवा करनेवालों को गुरु और भगवान अपने ढंग की प्रसादी देते हैं ।

वाहवाही व चाटुकारी के लिए तो कोई भी सेवा कर लेता है लेकिन मान-अपमान, गर्मी-ठंडी, आँधी-तूफान सह के तो सद्गुरु के पुण्यात्मा शिष्य ही सेवा कर पाते हैं ।

ऋषि प्रसाद, ऋषि दर्शन के सदस्य बनानेवाले और दूसरी सेवाएँ करनेवाले मेरे साधक-साधिकाएँ दृढ़ संकल्पवान, दृढ़ निष्ठावान हैं । जैसे बापू अपने गुरुकार्य में दृढ़ रहे ऐसे ही बापू के बच्चे, नहीं रहते कच्चे !