Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

पूज्य बापूजी के प्रेरक जीवन-प्रसंग

जीभ अपने-आप कैसे जुड़ी ?

रामभाई पटेल, गुजरात कृषि विद्यापीठ में कृषि अधिकारी (एग्रीकल्चर ऑफीसर) थे और 1971-72 से पूज्य बापूजी का सान्निध्य पाते रहे हैं ।

अहमदाबाद आश्रम जब बना ही था, उस समय की बात है । एक रात को बापूजी साधकों को ध्यान कराते समय अपने कुंडलिनी योग के सामर्थ्य से शक्तिपात कर रहे थे । जब ऐसा होता है तो कुंडलिनी शक्ति जागृत होकर विभिन्न क्रियाएँ होती हैं, अष्टसात्त्विक भाव उभरने लगते हैं । कोई नाचने लगता है, कोई रोने लगता है तो कोई हँसने लगता है । रामभाई को भी क्रियाएँ होने लगीं, वे नाचते-नाचते दीवाल से टकरा गये और उनके मुँह से खून निकलने लगा । उनको पता नहीं चला । पास के साधकों ने बोला : ‘‘बापूजी ! इनके मुँह से तो खून निकल रहा है, लगता है जीभ कट गयी है ।’’

बापूजी बोले : ‘‘कुछ नहीं होगा, रहने दे, सब ठीक हो जायेगा ।’’

जब ध्यान में से उनकी आँखें खुलीं तो पासवाले साधकों ने कहा : ‘‘आप अपनी जीभ दिखाइये । आपकी जीभ कट गयी थी और बहुत सारा खून बह रहा था ।’’

उन्होंने जीभ दिखायी तो सब लोग हैरान रह गये कि खून बहता दिखा परंतु जीभ में तो चोट का नामोनिशान तक नहीं है ! राम भाई को तो कुछ भान नहीं था । उन्होंने जब देखा कि कमीज पर खून के दाग हैं तो गुरुकृपा देख वे भी दंग रह गये ।

दस्तवर्धक पदार्थ बना दस्तनाशक

सन् 1977 की घटना है । रामजी पटेल की बेटी रीना तब ढाई महीने की थी । वे लोग उसे लेकर आश्रम आये हुए थे । उनकी पत्नी अम्माजी (पूज्य बापूजी की मातुश्री श्री माँ महँगीबाजी) के पास बैठी थी । बापूजी आये, बोले : ‘‘आप लोग अभी तक बैठे हैं !’’

रीना की माँ बोली : ‘‘बापूजी ! बच्ची को लगातार 3 दिन से दस्त हो रहे हैं और बंद ही नहीं हो रहे हैं । घर जाना है ।’’

बापूजी ने एक गिलास दूध मँगवाया ।

रीना की माँ : ‘‘नहीं बापूजी ! यह तो अभी बहुत छोटी है, ऊपर का दूध पियेगी तो और ज्यादा दस्त हो जायेंगे ।’’

‘‘नहीं-नहीं, आज तो इसको दूध पिलाना है ।’’

गिलास भर के लाये । बापूजी ने दूध में अँगूठा डालकर संकल्प किया और बच्ची को पिला दिया । और आश्चर्य ! वह ढाई महीने की बच्ची चट्-से दूध पी गयी । बापूजी बोले : ‘‘जाओ, अब शांति से घर पहुँच जाओगे ।’’

उसी समय से उसके दस्त बंद हो गये । दस्तवर्धक दूध दस्त की महौषधि बन गया ! उसके बाद बच्ची को वैसी कोई बीमारी नहीं हुई । साथ ही बापूजी ने उसे मानसिक रूप से भी मजबूत बना दिया, जिससे वह मुश्किलों में भी घबराती नहीं है ।

अजब-गजब करते हैं खेल !

जब ब्रह्मज्ञानी महापुरुष अपने स्वरूप की मौज में आते हैं तो उनके द्वारा अजब-गजब लीलाएँ हो जाती हैं । 1989 की बात है । बरसात का मौसम था, अहमदाबाद आश्रम में सत्संग-भवन खचाखच भरा हुआ था । बापूजी बहुत मौज में थे । आसमान में बादल आते दिखे तो बापूजी बोले : ‘‘दे दे दे... ।’’ ऐसा कहकर जैसे नल खोलते हैं उस प्रकार बापूजी ने हाथ घुमाकर नीचे को इशारा किया तो

जोरदार बारिश शुरू हो गयी । फिर कुछ ही क्षणों में बापूजी ने तीन बार चुटकी बजाकर हाथ ऊपर किया तो पानी बंद हो गया ।

पूज्यश्री जब नल खोलने का इशारा करते हुए हाथ नीचे करते तो जोरदार बरसात चालू हो जाती और चुटकी बजा के हाथ ऊपर ले जाते तो बरसात बंद हो जाती । ऐसा 3 बार 5-5 मिनट के अंतराल पर बापूजी ने किया । लोगों ने सोचा कि आज तक तो हम सिर्फ गाते थे पर आज प्रत्यक्ष देख लिया कि

बादल भी बरसात से पहले तेरी ही आज्ञा माँगे ।