Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

आत्म-हीरा पहचान लो

एक जौहरी मर गये । उनका लड़का 14-15 साल का था । उसने देखा कि ‘पिताजी तो मर गये, अब क्या करें ? पिताजी ने एक संदूक छुपाकर रखा है ।’ उसे खोला, उसमें बड़े-बड़े हीरे थे । लड़के ने सोचा, ‘क्या करूँ इनका ?’ चाचा को जाकर दिखाया : ‘‘चाचा ! ये हीरे कितने के होंगे ?’’

चाचा ने देखा कि ‘अभी इनका मूल्य बताना ठीक नहीं है । यदि मैं (सच) बोलता हूँ कि ‘बेटा ! ये तो नकली हीरे हैं’ तो इसकी मेरे प्रति आस्था मिट जायेगी । यह खुद जानकार बनेगा तो बढ़िया रहेगा ।’ चाचा बोला : ‘‘बेटा ! देखो, मेरी उम्र ज्यादा हो गयी है, दिखता भी कम है, यादशक्ति भी बुढ़ापे में ऐसी ही होती है । तू होशियार है, थोड़े दिन अपने भाइयों के साथ आ-जा दुकान पर । तेरे पिताजी मर गये, मुझे तो तू अपने पितातुल्य मानता है, मेरी बात मान मेरे बेटे !’’ उसको विश्वास में लिया । फिर बोले : ‘‘तू ये हीरे परखने का धंधा सीख ले । तू तो 2-4 महीने में बड़ा होशियार हो जायेगा । पढ़ने भी जाओ और साथ में काम भी सीखो । देर-सवेर तेरे को भी तो इस धंधे में मालिक बनना है न ! तू चिंता नहीं करना कि ‘मेरा क्या होगा ?’ मन मायूस मत करना ।’’ इस प्रकार चाचा ने उत्साह भर दिया ।

यह बड़ों का कर्तव्य है कि छोटों को विश्वास में लें । वह लड़का लग गया और 2-4 महीने में हीरा परखने में उसकी अच्छी गति हो गयी । फिर तो किसी भी हीरे को देखे तो बोल देता कि ‘यह इतने का है...’, ज्यादा तोल-मोल नहीं, ऐसा होशियार हो गया ।

अपने बेटों से भाइयों के बेटों का ज्यादा विकास करनेवाला चाचा हो चाहे चाची हो, मौसी हो चाहे पड़ोसन हो, अपनेवालों के प्रति न्याय और दूसरों के प्रति उदारता, आपका यह सिद्धांत लोग शिरोधार्य करेंगे । आप भी ऐसा करो ।

विफल क्यों होते हैं कि लोग अपनेवालों के प्रति ममता की खाई में गिरते हैं और दूसरे के प्रति बड़ा संकोच रखते हैं, ऐसा नहीं करो । जेठानी है तो देवरानी के बच्चों को ज्यादा प्यार किया कर और देवरानी है तो जेठानी के बच्चे के लिए उदार बन । ननद आ गयी है घर में अपने दो बच्चे लेकर तो भाभी का कर्तव्य है कि अपने बच्चों को थोड़ा न्याय की दृष्टि से कठोरतापूर्वक देख लेकिन ननद के बच्चों को उदारता से देख क्योंकि 5-25 दिन के तो मेहमान हैं । ननद का दिल जीतने का यह तरीका है । और ननद के बच्चे और अपने बच्चे लड़ें तो भाभी का कर्तव्य है कि ननद के बच्चों को प्यार-पुचकार दे और अपने बच्चों को अलग से समझाये कि ‘बच्चो ! वे अपने मेहमान हैं । अपने को प्रेम से रहना है, नहीं तो उनके दिल में हमारे लिए नफरत होगी । उनके अंतरात्मा की बद्दुआ अपने को क्यों मिले !’ अगर बेटी बोले कि ‘लेकिन वे ऐसे हैं, वैसे हैं...’ तो उसे समझाये कि ‘अरे कैसे भी हैं, हैं तो अपने ही । अपने रिश्तेदार हैं, अपने मेहमान हैं, क्यों ऐसे कटती है ? तू चाहे तो उनको प्यार से अपना बना सकती है बेटी !’ यह तरकीब है ।

‘मैं इसको दिखा दूँगी, मैं उसको दिखा दूँगी...’ अरे, सबके अंदर जो एक (परमात्मा) है वह तुम्हारे लिए आशीर्वाद छलकाये, तुम्हारे लिए कृपा छलकाये ऐसे समझदार, उदार, सज्जन बनो ।

हीरे परखने की कला सीखते हुए उस लड़के को हुआ कि ‘चलो, पिताजी के रखे हीरे देखें ।’ जाँचे तो वे नकली निकले ।

नहीं पता था तो लगता था बहुत कीमती हैं लेकिन हीरे को परखना समझ गया तो सारे कंकड़-पत्थर तुच्छ हो गये । ऐसे ही आत्म-हीरा पहचानने का आप थोड़ा प्रशिक्षण ले लो, आपके हृदय में जो परमेश्वर है उसकी महत्ता का तुम सत्संग सुन लो फिर यह सारा जगत, जो संदूक में भरे हुए हीरों जैसा दिख रहा है, उसकी पोल खुल जायेगी । सब नश्वर है, बदलनेवाला है । इसमें महत्त्वबुद्धि करना मूर्खता है ।