Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

कैसे हो ग्रीष्मजन्य समस्याओं का समाधान ?

(ग्रीष्म ऋतु: 20 अप्रैल से 20 जून)

ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होते ही असहनीय गर्मी तथा उससे जुड़ी समस्याओं, जैसे - थकान, शरीर में तथा पेशाब में जलन, अपच, दस्त, आँख आना (conjunctivitis), मूत्र-संक्रमण (urinary tract infection), चक्कर आना, लू लगना आदि का प्रादुर्भाव होता है । गर्मी से राहत पाने के लिए लोग आइसक्रीम, फ्रिज का ठंडा पानी, दही, लस्सी, बर्फ, कोल्ड ड्रिंक्स आदि लेना शुरू कर देते हैं लेकिन क्या इनसे समस्याओं का हल होता है ? नहीं... इससे तो वायु की वृद्धि होती है और पाचनशक्ति व गर्मी सहने की क्षमता कम हो जाती है ।

इन दिनों में शरीर का स्नेह अंश कम होने से शारीरिक बल स्वाभाविक कम हो जाता है, जिससे थकान या कमजोरी महसूस होने लगती है । इसे दूर करने के लिए लोग सूखे मेवे, मिठाइयाँ आदि पचने में भारी चीजों का सेवन करते हैं या दिन में बार-बार कुछ-न-कुछ खाते रहते हैं । इससे कमजोरी दूर नहीं होती बल्कि शरीर में अपचित आहार रस (कच्चा रस) बनकर थकान, कमजोरी व रोग बढ़ जाते हैं । ऐसे में सुंदर उपाय है सत्तू । देशी गाय का घी*, मिश्री व पानी मिलाकर बनाया जौ का सत्तू स्निग्ध, पौष्टिक व शीघ्र शक्तिदायी है । नींबू-पुदीने की शिकंजी, गन्ने का रस, आम का पना एवं बेल, गुलाब, पलाश व कोकम का शरबत, नारियल पानी, घर पर बनायी ठंडाई आदि पेय पदार्थ तथा खरबूजा, तरबूज, बिना रसायन (chemical) के पकाये मीठे आम, मीठे अंगूर, अनार, सेब, संतरा, मोसम्बी, लीची, केला आदि फलों का सेवन लाभदायी है । मुलतानी मिट्टी* या सप्तधान्य उबटन* से स्नान करना, मटके का पानी पीना, रात को देशी गाय के दूध में मिश्री मिलाकर पीना स्वास्थ्यप्रद है । सिंत श्री आशारामजी आश्रमों में सत्साहित्य सेवा केन्द्रों से व समितियों से प्राप्त होनेवाले शीतलता-प्रदायक, स्वास्थ्यवर्धक, गुणकारी गुलाब व पलाश शरबत और लीची, सेब व अनन्नास पेयों का सेवन इन दिनों में लाभकारी है ।

कुछ लोग दही को ठंडी प्रकृति का समझकर इस ऋतु में उसका भरपूर सेवन करते हैं किंतु वास्तव में दही गर्म प्रकृति का होता है और साथ ही पचने में भारी भी होता है । अनुचित काल में एवं अनुचित ढंग से दही का सेवन शरीर के स्रोतों (विभिन्न प्रवाह-तंत्रों) में अवरोध कर शरीर में सूजन उत्पन्न करता है इसलिए इस ऋतु में दही का सेवन करना वर्तमान व भविष्य में गम्भीर रोगों को निमंत्रण देना है । छाछ पीनी हो तो दही में 8 गुना जल मिला के, मथ के, मिश्री, धनिया, जीरा चूर्ण मिलाकर अल्प मात्रा में ले सकते हैं । स्वस्थ व्यक्ति कभी-कभी अल्प मात्रा में घर में बनाया गया ताजा श्रीखंड ले सकते हैं । ग्रीष्म में साठी के चावल का सेवन उत्तम है ।

इस ऋतु में उत्तम स्वास्थ्य के लिए - रात में देर तक जागना, सुबह देर तक सोये रहना, पति-पत्नी का सहवास, धूप का सेवन, अति परिश्रम, अति व्यायाम व अधिक प्राणायाम से बचें ।

* ये संत श्री आशारामजी आश्रमों में सत्साहित्य सेवा केन्द्रों से व समितियों से प्राप्त हो सकते हैं ।

REF: ISSUE352-APRIL-2023