Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

निष्पाप रहो, निश्चिंत रहो

एक बार हम लंदन गये थे । किसी भक्त ने बहुत प्रार्थना की तो हम उसके घर गये । घर में कोई प्रेत आदि आता और एक लड़की को सताता था । वह लड़की किसीको भी देखती तो चीखती थी । उस समय लंदन में प्रेत निकालने के बहाने किसी व्यक्ति को मारने-पीटने की घटना में कोई मर गया था, तब से वहाँ पुलिस मुल्ला-मौलवियों, साधु-संतों पर कड़ी नजर रखती थी । हम उस घर में गये तो लड़की चीखी : ‘‘आऽऽऽऽ... ।’’ ऐसी चीखी कि पड़ोस में आवाज गयी ।

पड़ोसियों ने पुलिस को फोन कर दिया । तुरंत पुलिस आ गयी ।

पुलिस आयी तो हम जिनके घर गये थे वे लोग घबरा गये, बोले : ‘‘बापूजी  !यह लड़की चीखी तो पड़ोसियों ने फोन कर दिया है और अब पुलिस आ गयी है तो आप थोड़ा उस कमरे में चले जाइये ।’’

मैंने कहा : ‘‘नहीं, हम इधर ही बैठेंगे ।’’

पुलिस आयी तो सब कमरे जाँचें और बाथरूम भी जाँचा कि ‘कोई घुस तो नहीं गया ।’ जहाँ मैं बैठा था वहाँ आरती आदि का सामान पड़ा था । पुलिसवालों ने मुझे देखा तो वे चौंक गये । बोले : ‘‘हू इज ही (ये कौन हैं) ?’’

घरवालों ने कहाः ‘‘ही इज अवर प्रीस्ट ।’’ अर्थात् ये हमारे धर्मगुरु हैं ।

मैंने पुलिसवालों पर एक नजर डाली तो वे चुपचाप चले गये ।

घरवाले बोल रहे थेः ‘‘आप किसी कमरे में छुप जाइये या बाथरूम में चले जाइये ।’’ अगर हम उस समय छुप जाते तो डरपोक बनते और पकड़े जाते । फिर जो छोड़ने की कार्यवाही होती सो होती लेकिन वे लोग किनकी पंक्ति में बापूजी को गिन डालते ?

अतः आप निर्भीक रहा करो । आप किसीको सताते नहीं, किसीका बुरा चाहते नहीं, सोचते नहीं, करते नहीं फिर जरा-जरा बात में डरना क्यों ?

अब मेरे पास इतने लोग आते हैं तो किसीको ईर्ष्या होती है इसलिए कुछ-का-कुछ अखबारों में छपवाते हैं । कोई डराने के लिए, कोई पैसा निकालने के लिए अखबारों में तोड़-मरोड़ के बापू की निंदा भी लिख देते हैं लेकिन मैं निर्भीक रहता हूँ तो मेरे को तो कोई फर्क नहीं पड़ता ।

आप बुरे मत बनो फिर कोई आप पर दोषारोपण करे, आपको बुरा कहे तो डरो मत, धैर्य रखो । भयभीत नहीं होना, क्रोधित नहीं होना । सोचो, ‘भगवान हमारी सहनशक्ति बढ़ा रहे हैं, समता बढ़ाने का अवसर दे रहे हैं ।’ और कोई प्रशंसा करे तो सोचो, ‘भगवान हमारा उत्साह बढ़ाने की लीला कर रहे हैं ।’ दोनों समय भगवान की स्मृति आ जाय । सफलता और आनंद आये तो सोचो, ‘भगवान की दया है ।’ विफलता और विरोध हो तो सोचो, ‘भगवान की कृपा है ।’ विपरीत परिस्थिति वैराग्य और अनुकूल परिस्थिति सेवा सिखाने को आती है । तो एक तरफ सेवा हो, दूसरी तरफ विवेक-वैराग्य हो ।