- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
(गीता जयंती : 22 दिसम्बर)
श्रीमद्भगवद्गीता विश्वविख्यात ग्रंथ है । यह हर उम्र, हर जाति, हर धर्म के व्यक्ति के लिए है । गीता में जाति, धर्म या सम्प्रदाय का कोई भेदभाव नहीं है । गीता में दृढ़तापूर्वक अपना कर्तव्य निभाने का संदेश है, सतत जागृत रहने का संकेत है, सर्व कर्म सर्वेश्वर को अर्पित करके हलके फूल बनकर जीने का आदेश है । गीता में जीते-जी मुक्ति का अनुभव करने का मार्ग है । इसमें उधार का धर्म नहीं है । मरने के बाद का वादा गीता नहीं करती । यहीं आप विश्वनियंता का अनुभव कर सकते हो क्योंकि आपका आत्मा सदैव निर्लेप है और आप वही हो ।
गीता एक पुस्तक नहीं है बल्कि राष्ट्रमाता है, और भी न्याययुक्त शब्द कहना चाहें तो विश्वमाता है । गीता प्राणिमात्र के लिए है । किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, गुरु-निर्देश या किसी भी व्यवसाय अथवा जीवन में कोई जीता हो पर गीता का सहारा लेनेवाले के जीवन में कर्तव्यनिष्ठा, निष्कामता और आत्मशुद्धि के सद्गुण खिलने लगते हैं । यह कमजोरों को बल देती है, हारे को हिम्मत देती है, भगेड़ू (कर्तव्य-कर्म से पलायन करनेवाले) को कर्तव्य-पालन हेतु उत्साहित करती है और उत्साही को कर्तव्य-कर्म करने की प्रेरणा के साथ निष्कामता का संकेत देती है । आलसी को उत्साह, उत्साही को निष्कामता देती है । निष्कामी को निरहंकारिता देती है, नहीं तो निष्कामता का भी एक अहंकार होता है । निरहंकारी व्यक्ति को निजस्वरूप में जगा देती है । इस प्रकार जो जिस स्थिति में है वहाँ से उसे ऊँचा उठाकर परम उन्नति के शिखर तक पहुँचा के मुक्त करनेवाले ग्रंथ का नाम है गीता ग्रंथ !
युवाओं के लिए भी जरूरी है गीता-ज्ञान
भगवान वेदव्यासजी कहते हैं :
सर्वशास्त्रमयी गीता सर्वदेवमयो हरिः ।
सर्वतीर्थमयी गङ्गा सर्ववेदमयो मनुः ।।
(महाभारत, भीष्म पर्व : 43.2)
गीता सर्व शास्त्रमयी है । जिसके पास गीता शास्त्र है उसे और ग्रंथ लेने की विशेष जरूरत नहीं है । (इसके साथ यह भी समझना आवश्यक है कि गीता शास्त्र के रहस्य को सरलता से समझने के लिए गीता-ज्ञान से सम्पन्न ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों के अनुभवयुक्त सत्संगों पर आधारित सत्साहित्य का अध्ययन-मनन अवश्य करणीय है । - संकलक) एक भी ऐसी बात नहीं है जो गीताकार ने बतायी न हो । आत्मज्ञान, परमात्मप्राप्ति की बात तो बतायी ही है पर शरीर की तंदुरुस्ती का भी संकेत करना भूले नहीं हैं :
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ।। (गीता : 6.17)
आज के युवान को गीता का एकाध श्लोक हर रोज पक्का करना चाहिए । गीता के अर्थ में रमण करके युवा कोई ध्येय तय करे तो ध्येय में लगे रहने की उसमें शक्ति आयेगी । आज के युवान का मनोबल काफी कमजोर हो गया है । उसके लिए गीता एक अमृतवृष्टि करनेवाली माँ है ।
भगवद्गीता सर्वश्रेष्ठ क्यों ?
विश्व में कई महापुरुषों, अवतारों की जयंती हमने सुनी है पर अगर किसी ग्रंथ की जयंती सैकड़ों वर्षों से मनायी जाती है तो वह है गीता ग्रंथ ।
गीता का कोई आधा श्लोक भी जिन प्रेतात्माओं के कान में पड़ा है उनकी भी सद्गति हुई है ऐसा पद्म पुराण में बताया गया है ।
पद्म पुराण और महाभारत में गीता की महिमा का वर्णन है । विश्व की ज्यादातर भाषाओं में गीता का अनुवाद हुआ है । अष्टावक्र गीता, राम गीता, मंकि गीता, अवधूत गीता इत्यादि सौ से भी अधिक गीताएँ हैं पर इस भगवद्गीता में साधारण मनुष्य से लेकर बड़े योगेश्वर को भी लाभ हो ऐसा सब समाहित किया हुआ है । इस गीता का ज्ञान उपनिषदों का है । उपनिषद्रूपी गाय को कन्हैयारूपी ग्वाला दोह रहा है । फिर अपने प्यारे अर्जुन को उसका दुग्धपान कराया और इस निमित्त संसार को अमृत मिला है ।
REF: ISSUE336-DECEMBER-2020