Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

एकादशी व्रत क्यों?

प्रायः डॉक्टर दो सप्ताह में एक दिन उपवास रखने के लिए कहते हैं । इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है । हमारे शरीर के प्राकृतिक चक्र से जुड़ी मंडलनाम की एक चीज होती है । मंडल का मतलब है कि हर 40 से 48 दिनों में शरीर एक विशेष चक्र से गुजरता है । हर चक्र में 3 दिन (हर 11 से 14 दिन के बीच में एक दिन) ऐसे होते हैं जिनमें शरीर को भोजन की आवश्यकता नहीं होती है । भूख का एहसास कम होता है । उस दिन बिना कुछ खाये भी रहा जा सकता है । मनुष्यों के साथ कुछ जानवर भी उपवास करते हैं । उस दिन को शरीर की सफाई का दिन भी कहते हैं ।

हमारे ऋषि-मुनि तो हजारों वर्ष पहले से कहते आ रहे हैं और शास्त्रों में भी एकादशी के दिन उपवास करने का विधान दिया गया है । हिन्दी महीनों के अनुसार हर 14-15 दिन में एक बार एकादशी आती है ।

ब्रह्मवेत्ता संत पूज्य बापूजी ने अपने सत्संगों में एकादशी की महत्ता बहुत सुंदर ढंग से बतायी है । पूज्यश्री कहते हैं : ‘‘एकादशी व्रत की बड़ी भारी महिमा है । 5 कर्मेन्द्रियों, 5 ज्ञानेन्द्रियों और 11वें मन को संयत करनेवाला व्रत एकादशी का व्रत है । यह शरीर के रोगों को तो मिटाता है, मन के दोषों को भी निवृत्त करता है, बुद्धि को ओजस्वी-तेजस्वी बनाता है, भगवद्भक्ति में पुष्टि, योग में सफलता एवं मनोवांछित फल देता है ।

वात-पित्त-कफजनित दोष अथवा समय-असमय खाये हुए अन्न आदि के जो दोष 14 दिन में इकट्ठे होते हैं, 15वें दिन एकादशी का व्रत रखा तो वे दोष निवृत्त होते हैं । जो विपरीत रस या कच्चा रस नाड़ियों में पड़ा है, जो बुढ़ापे में मुसीबत देगा, व्रत उसको नष्ट कर देता है । इससे शरीर जल्दी रोगी नहीं होगा । एकादशी को चावल खाने से स्वास्थ्य-हानि, पापराशि की वृद्धि कही गयी है ।

इस दिन हो सके तो निर्जल रहें, नहीं तो थोड़ा जल पियें । ठंडा जल पीने से मंदाग्नि होती है, गुनगुना जल पियें, जिससे जठर की भूख बनी रहे और नाड़ियों में जो वात-पित्त-कफ के दोष जमा हैं, उन्हें खींचकर जठर उनको पचा दे, आरोग्य की रक्षा हो । जल से गुजारा न हो तो थोड़े-से फल खा लें और थोड़े-से फल से भी गुजारा न हो तो मोरधन आदि की खिचड़ी खा ली थोड़ी । ऐसा नहीं कि आलू की सब्जी खायी, आइसक्रीम खायी, कोल्ड डिंक्स पी, सिंघाड़े के आटे का हलवा भी खा लिया, कढ़ी खा ली, खोपरा पाक फिर सींगदाने ठाँस लिये, केले भी खा लिये... यह एकादशी को चटोरादशी बनाने की भूल कर रहे हैं ।

एक 95 साल के जवान से मैंने पूछा : ‘‘आप 95 साल में जवान कैसे ?’’

बोले : ‘‘मैं हफ्ते में एक बार कड़क व्रत रखता हूँ और जब मौसम बदलता है तब 10-10 दिन के व्रत रखता हूँ तथा भोजन में थोड़ा सलाद खाता हूँ इसलिए 95 साल में भी मैं जवान जैसा हूँ ।’’

जो तीसों दिन खाना खाते हैं वे जल्दी बूढ़े होते हैं और बीमारियों के घर हो जाते हैं । हफ्ते में एक दिन व्रत रखें, नहीं तो 15 दिन में एक बार एकादशी का व्रत अवश्य रखना ही चाहिए । लेकिन बूढ़े, बालक, गर्भिणी, प्रसूतिवाली महिला तथा जिनको मधुमेह (diabetes) है, जो अति कमजोर हैं वे व्रत न रखें तो चल जायेगा । अथवा कोई कमजोर है और व्रत रखता है तो फिर वह किशमिश खाये । यदि उपवास नहीं करना है तो चने और किशमिश या काली द्राक्ष खायें ।

एकादशी के दिन कुछ बातों का ध्यान रखें :

(1) बार-बार पानी नहीं पियें । (2) वाणी या शरीर से हिंसा न करें । (3) अपवित्रता का त्याग करें । (4) असत्य भाषण न करें । (5) पान न चबायें । (6) दिन को नींद न करें । (7) संसारी व्यवहार - मैथुन भूलकर भी न करें । (8) जुआ और जुआरियों की बातों में न आयें । (9) रात को शयन कम करें, थोड़ा जागरण करें (रात्रि 12 बजे तक) । (10) पतित, हलकी वार्ता करें-सुनें नहीं । (11) दातुन न चबायें, मंजन कर लें ।

सुबह संकल्प करें

एकादशी के दिन सुबह संकल्प करें कि आज का दिन सारे पापों को जलाकर भस्म करनेवाला, आरोग्य के कण बढ़ानेवाला, रोगों के परमाणुओं को नष्ट करनेवाला, नाड़ियों व मन की शुद्धि करनेवाला, बुद्धि में भगवद्भक्ति भरनेवाला तथा ओज, बल और प्रसन्नता देनेवाला हो । देवी ! तेरे नाम का मैं व्रत करता हूँ ।फिर नहा-धोकर भगवद् पूजा, ध्यान, सुमिरन, जप करें ।’’

REF: ISSUE327-RP-MARCH-2020