(निर्जला एकादशी : 21 जून)
युधिष्ठिर ने कहा : ‘‘जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिये ।’’
भगवान श्रीकृष्ण बोले : ‘‘राजन् ! उसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवतीनंदन व्यासजी करेंगे क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद-वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं ।’’
तब वेदव्यासजी कहने लगे : ‘‘दोनों ही पक्षों की एकादशियों के दिन मनुष्य भोजन न करे । द्वादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र हो फूलों से भगवान केशव की पूजा करे । फिर नित्यकर्म समाप्त होने के पश्चात् पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अंत में स्वयं भोजन करे । राजन् ! जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए ।’’
भीमसेन बोले : ‘‘परम बुद्धिमान पितामह ! मेरी उत्तम बात सुनिये । राजा युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव - ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि ‘भीमसेन ! तुम भी एकादशी को न खाया करो ।’ किंतु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी ।’’
व्यासजी : ‘‘यदि तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन न करना ।’’
भीमसेन : ‘‘महाबुद्धिमान पितामह ! मैं आपके सामने सच्ची बात कहता हूँ । एक बार भोजन करके भी मुझसे व्रत नहीं किया जा सकता, फिर उपवास करके एकदम निराहार तो मैं रह ही कैसे सकता हूँ ! मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अतः जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ तभी यह शांत होती है । इसलिए महामुने ! मैं वर्ष भर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ । जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये । मैं उसका यथोचित रूप से पालन करूँगा ।’’
व्यासजी ने कहा : ‘‘भीम ! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृषभ राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्ल पक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो । केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है । एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता हैŸ। तदनंतर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके सदाचारी ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे । इस प्रकार सब कार्य पूरे करके जितेन्द्रिय पुरुष सदाचारी ब्राह्मणों के साथ भोजन करे । वर्ष भर में जितनी एकादशियाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है । शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है ।’
एकादशी व्रत करनेवाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंगवाले दंड-पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते । अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाववाले, हाथ में सुदर्शन चक्र धारण करनेवाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत उस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं । अतः निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास और श्रीहरि का पूजन करो । स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है । जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है । उसे एक-एक प्रहर में कोटि-कोटि स्वर्णमुद्राएँ दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है । ‘मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है ।’- यह भगवान श्रीकृष्ण का कथन है । निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णव पद को प्राप्त कर लेता है । जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह पाप का भोजन करता है । इस लोक में वह चांडाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है ।
जो मनुष्य ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे, वे परम पद को प्राप्त होंगे ।’’