हमारे जीवन का आधा हिस्सा सोने में बीतता है । कुछ भाग बीमारियों में चला जाता है । जो कुछ शेष है उसको भी कुछ लोग टीवी, इंटरनेट, मखौल, इधर-उधर की बातों में बिता देते हैं । वे नहीं जानते कि उन्होंने अपना अत्यंत कीमती समय नष्ट कर दिया और कर रहे हैं । ऐसे वे ही लोग होते हैं जिनके जीवन का न कोई उद्देश्य होता है न कोई सिद्धांत। वे लोग कितने अनजान हैं कि उनको अपनी इस अवनति का भान भी नहीं है । वे लोग धन को नष्ट करने में तनिक भी हिचकते नहीं, साथ-साथ चरित्र और समय की बलि भी देते हैं ।
मनुष्य का जन्म किसी कार्य-विशेष के लिए हुआ है । जीवन खाने-पीने, पहनने और परिवार में परेशान होने के लिए नहीं है अपितु जीवन के पीछे परमात्मा का पवित्र विधान है । इस अनित्य शरीर में नित्य सच्चिदानंद स्वभाव को पाना व जानना ही वास्तविक जीवन है । इसलिए जीवन का प्रत्येक क्षण साक्षी सुखस्वरूप की स्मृति में, ध्यान में प्रतिष्ठित होने के लिए लगाना चाहिए । समय बेशकीमती है । एक बार हाथ से निकल गया तो निकल गया । जब-जब समय की सूचना देनेवाली घंटी बजती है, तब-तब समझो कि तुम्हारे जीवन में मृत्यु एक घंटे को पार कर चुकी है । सोचो तो सही कि आज तुम कुछ नहीं करोगे तो और कब कर पाओगे । दूसरे क्षण क्या होगा, कौन जानता है ? किसी भी क्षण, इस समय भी दम निकल सकता है, इसमें संदेह ही क्या है ?
कब ऐसा काम करोगे जिससे जीवन का मतलब सिद्ध हो, मनुष्य-जीवन और पशु-जीवन में अंतर पड़े । कभी विचार करो कि ‘हम क्या हैं और क्या कर रहे हैं ?’ शरीर नश्वर है, अनिश्चित है तो इसका अर्थ यह नहीं कि हम पलायनवादी बनें । एक-एक क्षण का सत्स्वरूप की प्रीति में उपयोग करना चाहिए । समय अनमोल है, इसको अनमोल परमात्मा को पाने में ही लगाना चाहिए ।
जिसको सफलता पानी हो और अपना मनुष्य-जीवन धन्य करना हो, उसे अपना समय सत्संग, स्वाध्याय, सेवा, परोपकार आदि में ही बिताना चाहिए । बेकार की बातें एक क्षण के लिए भी की जायें तो मन पर बड़ा बुरा प्रभाव डालती हैं । यदि किन्हीं महापुरुष के दो वचन लग जाते हैं तो जीवन ही बदल जाता है । समय भाग ही नहीं रहा है, सीमित भी है। समय देने से सब मिलता है परंतु सब कुछ देने से भी बीता समय नहीं लौटता । धन तिजोरी में संग्रहीत कर सकते हैं परंतु समय तिजोरी में नहीं सँजोया जा सकता । ऐसे अमूल्य समय को श्रेष्ठ कार्यों में, श्रेष्ठ चिंतन में, परम श्रेष्ठ ‘सोऽहम्’ स्वभाव में लगाकर जीवन सार्थक करें । सबसे श्रेष्ठ कार्य है ब्रह्मवेत्ता महापुरुष के मार्गदर्शन में परमात्मप्राप्ति करना ।
* RP-ISSUE268-APRIL-2015