Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

अध्यात्म और प्राकृतिकता में समस्याओं का समाधान

इसका अर्थ अब मुझे समझ में आया

मैं जानता हूँ कि ईश्वर ने बचायावाक्य का अर्थ आज मैं अच्छी तरह समझने लगा हूँ । पर साथ ही मैं यह भी जानता हूँ कि इस वाक्य की पूरी कीमत अभी तक मैं आँक नहीं सका हूँ । वह तो अनुभव से ही आँकी जा सकती है । पर मैं कह सकता हूँ कि आध्यात्मिक प्रसंगों में, वकालत के प्रसंगों में, संस्थाएँ चलाने में, राजनीति में ईश्वर ने मुझे बचाया है । मैंने यह अनुभव किया है कि जब हम सारी आशा छोड़कर बैठ जाते हैं, हमारे दोनों हाथ टिक जाते हैं, तब कहीं-न-कहीं से मदद आ ही पहुँचती है । स्तुति, उपासना, प्रार्थना - ये वहम नहीं हैं बल्कि हमारा खाना-पीना, चलना-बैठना जितना सच है, उससे भी अधिक सच ये चीजें हैं । यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि यही सच है, और सब झूठ है ।

ऐसी उपासना, प्रार्थना निरा वाणी-विलास नहीं होती । उनका मूल कंठ नहीं, हृदय है । अतः यदि हम हृदय की निर्मलता को पा लें, उसके तारों को सुसंगठित रखें तो उनमें से जो सुर निकलते हैं, वे गगनगामी होते हैं । मुझे इस विषय में कोई शंका नहीं है कि विकाररूपी मलों की शुद्धि के लिए हार्दिक उपासना एक रामबाण औषधि है ।

(गांधीजी की आत्मकथा, भाग 1, अध्याय 21)

गुरुपद की महत्ता पर मेरा विश्वास है

हिन्दू धर्म में गुरुपद को जो महत्त्व प्राप्त है, उसमें मैं विश्वास करता हूँ । गुरु बिन ज्ञान न होय ।इस वचन में बहुत कुछ सच्चाई है । अक्षर-ज्ञान देनेवाले अपूर्ण शिक्षक से काम चलाया जा सकता है पर आत्मदर्शन करानेवाले अपूर्ण शिक्षक से तो चलाया ही नहीं जा सकता । गुरुपद सम्पूर्ण ज्ञानी को ही दिया जा सकता है । गुरु की खोज में ही सफलता निहित है क्योंकि शिष्य की योग्यता के अनुसार ही गुरु मिलते हैं । इसका अर्थ यह है कि योग्यताप्राप्ति के लिए प्रत्येक साधक को सम्पूर्ण प्रयत्न करने का अधिकार है और इस प्रयत्न का फल ईश्वराधीन है । (आत्मकथा, भाग 2, अध्याय 1)

गीता आचार की प्रौढ़ मार्गदर्शिका

गीतापाठ का मेरे सह-अध्यायियों पर क्या प्रभाव पड़ा, उसे वे जानें परंतु मेरे लिए तो वह पुस्तक आचार की एक प्रौढ़ मार्गदर्शिका बन गयी । वह मेरे लिए धार्मिक कोश का काम देने लगी । जिस प्रकार नये अंग्रेजी शब्दों के हिज्जों या उनके अर्थ के लिए मैं अंग्रेजी शब्दकोश देखता था, उसी प्रकार आचार-संबंधी कठिनाइयों और उनकी अटपटी समस्याओं को मैं गीताजी से हल करता था । (आत्मकथा, भाग 4, अध्याय 5)

प्राकृतिक चिकित्सा ही सचोट उपाय

कब्ज के लिए मिट्टी-उपचार का मुझ पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा । उपचार इस प्रकार था : खेत की साफ लाल या काली मिट्टी ले के उसमें प्रमाण से पानी डालकर साफ, पतले व गीले कपड़े में उसे लपेटा और पेट पर रख के उस पर पट्टी बाँध दी । यह पुलटिस रात को सोते समय बाँधता था और सवेरे अथवा रात में जब जाग जाता तब खोल दिया करता था । इससे मेरा कब्ज जाता रहा । उसके बाद मिट्टी के ऐसे उपचार मैंने अपने पर और अपने अनेक साथियों पर किये और मुझे याद है कि वे शायद ही किसी पर निष्फल रहे हों ।

जीवन में दो गम्भीर बीमारियाँ मैं भोग चुका हूँ, फिर भी मेरा यह विश्वास है कि मनुष्य को दवा लेने की शायद ही आवश्यकता रहती है । पथ्य तथा पानी, मिट्टी इत्यादि के घरेलू उपचारों से एक हजार में से 999 रोगी स्वस्थ हो सकते हैं । क्षण-क्षण में वैद्य, हकीम और डॉक्टर के घर दौड़ने से और शरीर में अनेक प्रकार के पाक व रसायन (दवाइयाँ) ठूँसने से मनुष्य न सिर्फ अपने जीवन को छोटा कर लेता है बल्कि अपने मन पर काबू भी खो बैठता है । फलतः वह मनुष्यत्व गँवा देता है और शरीर का स्वामी रहने के बदले उसका गुलाम बन जाता है ।  (आत्मकथा, भाग 4, अध्याय 7)

 

*RP-ISSUE276-DECEMBER 2015