Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

तन का रोग मिटाया, भवरोग मिटाने के रास्ते लगाया

खंडवा (म.प्र.) के सेवानिवृत्त अनुविभागीय अधिकारी (ड.ऊ.ज.) रणवीर सिंह चौधरी (वर्तमान में आश्रम में सेवा-साधनारत) लगभग 27 वर्षों से पूज्य बापूजी के सत्संग-सान्निध्य व सेवा का लाभ लेते आये हैं । उनके द्वारा बताये गये कुछ संस्मरण :

हलकी आदतें छूटीं और आनंद छा गया

पहले मेरा हलका खान-पान था जैसे - पान, तम्बाकू, गुटखा आदि खाना । 1992 में एक साधक भाई ने मुझे बापूजी के अमृतवचनों की जीवन रसायननामक पुस्तक दी । उसे पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा । उससे मेरा आत्मबल बढ़ा व ईश्वर की ओर चलने की प्रेरणा भी मिली । मुझे बापूजी से मंत्रदीक्षा लेने की इच्छा होती थी लेकिन मन में होता था कि पहले बुरी आदतें छोड़ दूँ फिर दीक्षा लूँ ।

मैंने एक आश्रमवासी भाई से पूछा : ‘‘मुझे बापूजी से मंत्रदीक्षा लेनी है, क्या-क्या छोड़ना पड़ेगा ?’’

वे बोले : ‘‘आप दीक्षा ले लीजिये, फिर कुछ छोड़ना नहीं पड़ेगा, अपने-आप सब हलके कर्म छूट जायेंगे ।’’

मैंने सन् 1994 में पूज्य बापूजी से मंत्रदीक्षा ली और हुआ भी ऐसा ही । सब बुरी आदतें अपने-आप छूट गयीं और जीवन में एक नया आनंद और उल्लास छा गया ।

जीवनभर रहनेवाली बीमारी एकाएक ठीक हो गयी !

1998 की बात है । मुझे गठिया रोग हो गया था । डॉक्टरों ने कहा : ‘‘इस रोग का अब कोई इलाज नहीं है । रिपोर्ट में आर.एफ. बहुत बढ़ गया है, अब आप कभी ठीक नहीं हो सकते हैं । एक-दो साल में बिस्तर पकड़ लेंगे और चल-फिर नहीं पायेंगे । ज्यादा पेनकिलर लेने से लीवर, किडनी तथा हार्ट के वाल्व भी खराब हो सकते हैं और आँखों की रोशनी भी जा सकती है इसका ध्यान रखना ।’’

 

मैंने ठान लिया कि ‘2 साल में बिस्तर पकड़ूँ उससे पहले अधिक-से-अधिक समय आश्रम में अनुष्ठान करके बिताऊँगा ।मेरे भीतर हमेशा रहता था कि मेरे साथ गुरुदेव हैं तो किस बात का डर !

एक बार हरिद्वार में पूज्य बापूजी सत्संग में बता रहे थे कि ‘‘जो आश्रम का भोजन औषध मान के करेंगे उनके शरीर के रोग ठीक हो जायेंगे ।’’

गुरुदेव के इन वचनों को सुनकर मेरे मन में दृढ़ हुआ कि मैं तो आश्रम के भोजन और अनुष्ठान से ही ठीक हो जाऊँगा ।

मैं अनुष्ठान के समय आश्रम का भोजन औषध समझकर करने लगा । परिणामस्वरूप 8 दिन में ही स्वास्थ्य में सुधार होने लगा । अनुष्ठान के दौरान मुझे झाड़ू लगाना आदि जो भी सेवा मिलती, बड़े उत्साह व प्रेम से करता । इससे घुटने, कमर आदि की कसरत भी होने लगी । एक दिन पूज्य बापूजी के सत्संग की कैसेट चल रही थी, जिसमें गुरुदेव गठिया का इलाज बता रहे थे । मैंने वे प्रयोग चालू कर दिये और कुछ ही दिनों में ऐसा चमत्कार हुआ कि मुझे 100 प्रतिशत फायदा हो गया ।

पहलेवाले डॉक्टर से ही जाँच करायी तो रिपोर्ट देखकर वे आश्चर्य में पड़ गये, बोले : ‘‘आपका तो आर.एफ. बढ़ गया था, नॉर्मल कैसे हुआ !’’ उनको विश्वास नहीं हो रहा था तो दूसरी विधि से जाँच करायी । उसमें भी नॉर्मल आया । डॉक्टर बोले : ‘‘ऐसा आपने क्या किया ? जीवनभर रहनेवाली बीमारी एकाएक कैसे ठीक हो गयी !’’

आज 20 साल हो गये, मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ ।

(पूज्य बापूजी द्वारा बताये गये गठिया में लाभकारी प्रयोग पढ़ें पृष्ठ 31 पर)

लगने लगे गठिया-निवारण शिविर

मैं अन्य लोगों को भी पूज्य बापूजी द्वारा बताये गये वे प्रयोग बताने लगा । एक बार मन में आया कि मैं इस प्रकार गुरुआज्ञा के बिना हर किसीको गुरुदेव द्वारा बताये गये प्रयोग बता देता हूँ, क्या यह गुरुजी की दृष्टि में उचित रहेगा ?’

उज्जैन में बापूजी के पास गया और मन की दुविधा श्रीचरणों में रखी । पूज्यश्री कुछ देर शांत हो गये, फिर बोले : ‘‘बताया करो ! 3 महीने में एक शिविर भी लगाया करो और वैद्यों को भी साथ में रखना ।’’

उसके बाद गठिया-निवारण के शिविर लगने चालू हो गये । शिविर में लोगों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता था । हम अलग-अलग आश्रमों में शिविर की सूचना पहले से दे देते थे । निश्चित दिन लोग वहाँ इकट्ठे हो जाते । शिविर में हम पूज्य बापूजी द्वारा बताये गये प्रयोग आदि उन्हें अच्छी तरह से सिखाते और पथ्य-अपथ्य आदि की जानकारी भी देते । गुरुदेव के आशीर्वाद से इन शिविरों से कई लोगों का गठिया ठीक हो गया । ऐसे-ऐसे लोग जो बेड रेस्ट पर थे, चलना-फिरना जिनके लिए दूर की बात थी, वे भी आज सहज में चल-फिर रहे हैं, अपना सब कार्य कर लेते हैं व पूरी तरह स्वस्थ हैं । गुरुदेव ने मेरा तन का रोग तो मिटाया ही, साथ में अपनी शरण में लेकर भवरोग मिटाने के रास्ते भी लगाया ।

उनका तो भवरोग भी ठीक हो जायेगा !

एक बार देहरादून आश्रम में बापूजी रुके थे । वहाँ मुझे पूज्यश्री से वार्तालाप करने का अवसर मिला तो मैंने बताया कि ‘‘गुरुदेव ! आश्रम का भोजन औषध मान के किया तो मेरा गठिया ठीक हो गया ।’’

गुरुदेव बोले : ‘‘जो आश्रम का भोजन औषध मान के करेंगे उनके शरीर के रोग ठीक होंगे परंतु जो प्रसाद मानकर करेंगे उनका तो भवरोग भी ठीक हो जायेगा !’’  (क्रमशः) RP-325