(दीपावली पर्व : 25 से 29 अक्टूबर)
धनतेरस से लेकर द्वितीया अर्थात् भाईदूज तक के 5 दिवस शरीर, मन और मति को स्वस्थ रखने की बातें जानने और आत्मदीया जगाने वाले पर्व के दिन हैं ।
धनतेरस
इस मायावी जगत में धन, ऐश्वर्य पाने के लिए धनतेरस को गाय व लक्ष्मी की पूजा की जाती है । यमराज की प्रसन्नता पाने एवं अकाल मृत्यु टालने के लिए इस दिन प्रांगण में दीपदान करना, नैवेद्य धरना ।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी भगवान धन्वंतरि का अवतरण दिवस है । श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान के 24 अवतारों में से यह 12वाँ अवतार माना जाता है । भगवान कहते हैं : ‘‘जब समुद्र-मंथन हुआ था तो धनतेरस के दिन मैं अमृत का घड़ा लेकर धन्वंतरि के रूप में प्रकट हुआ था । उस अमृत के घड़े को देखते-देखते मेरे हर्ष के आँसू की एक बूँद उस घड़े में गिरी । उससे तुलसी प्रकट हुई थी । इस दिन जो तुलसी व लक्ष्मीजी की पूजा व आदर करेगा वह धन-धान्य तथा आरोग्य पाकर सुखी रहेगा ।’’
नरक चतुर्दशी
इस दिन नरकासुर को श्रीकृष्ण ने मारा था, इस खुशी में दक्षिण भारत के लोग दिवाली मनाते हैं । नरक चतुर्दशी व दिवाली की रात्रि को जागरण व जप विशेष फलदायी होते हैं । नरक चतुर्दशी को मंत्र को चैतन्य की विशेष प्राप्ति होती है, मंत्र की सिद्धि होती है । अगर इस दिन अपने मंत्रों का जप नहीं करते हैं तो वे मलिनता को प्राप्त होते हैं, उनका प्रभाव कम हो जाता है । अगर इस दिन कोई गलती से भी सूर्योदय के बाद उठता है तो वर्षभर के उसके पुण्यों व सत्कर्मों का प्रभाव कमजोर हो जायेगा । लेकिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर लेता है तो उसके सत्त्व की अभिवृद्धि होगी । और सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं... सत्त्वगुण से तात्त्विक ज्ञान, शुद्ध ज्ञान जगमगाता है । परमात्मा के साथ एकाकार होने के लिए नरक चतुर्दशी व दीपावली की रात्रि बड़ी हितकारी होती है । इन दिनों में -
* सरसों के तेल का दीया जलाना आँखों के लिए हितकारी है ।
* गोमूत्र* पानी की बाल्टी में डालकर स्नान किया जाय तो गंगोदक-स्नान करने का फल होता है और रोमकूपों को लाभ पहुँचता है ।
* गौ-गोबर और गोमूत्र का मिश्रण लगा के नहाना पुण्यदायी और वायु व कफ शामक है ।
दीपावली
दिवाली, लक्ष्मी-पूजन से जुड़े पौराणिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक अनेक-अनेक प्रसंग हैं । इनका तात्पर्य यह है कि इस दिन नया संकल्प करें कि ‘हर रोज इतनी माला करूँगा ही, इतनी देर मौन रहूँगा, श्री योगवासिष्ठ महारामायण व गुरुगीता का पाठ करूँगा ही ।’ गुरुगीता का पाठ करने से शत्रुओं का मुँह बंद हो जाता है, दोष-पाप नष्ट हो जाते हैं - ऐसे शिवजी के वचन हैं । तो जप, पाठ, मौन आदि का नियम ले के संकल्पवान, दृढ़निश्चयी बनना चाहिए ।
दिवाली को रुपयों का, बहीखाते (रलर्लेीपीं लेेज्ञ) का पूजन होता है । व्यापारी तो 12 महीने में अपना बहीखाता देखे लेकिन साधक एक ऐसा चतुर व्यापारी है कि हर घंटे में अपना बहीखाता देखता है । एक घंटा बीत गया तो चित्त कैसा है, देखें । ‘जो भी कुछ सुख-दुःख आया, पसार हो गया लेकिन उसका द्रष्टा पसार नहीं हुआ, वह आत्मदीया मेरे साथ है !...’ ऐसा विचार कर एक क्षण के लिए तुम आ सकते हो अपने वास्तविक घर में । ‘एक घंटा बीत गया, वह सपना हो गया । दिन पसार हो गया, रात पसार हो गयी पर वह मेरा आत्मदीया बुझा नहीं । रात की नींद को भी जान रहा है वह मेरा दीया । आँखें सो गयीं, वाणी चुप हो गयी लेकिन वह दीया सदा जगा है । उस दीये के लिए लौकिक तेल-बाती नहीं चाहिए । उस दीये को बुझाना मुश्किल है और संसार के दीये को सदा जलाये रखना मुश्किल है । जो सदा प्रकाशित दीया है वही मेरा दीया है ।...’ इतना केवल समझने के लिए तुम्हें बार-बार योग करना पड़ेगा क्योंकि वियोग बार-बार किया है । योग करने के लिए तुम्हें सचमुच शास्त्र नहीं कहते हैं लेकिन वियोग से हटाने के लिए योग करना है । बार-बार तुमने इतर चिंतन किया है इसलिए आत्मचिंतन करना है वरना आत्मा का चिंतन करने से आत्मा बड़ा न होगा । प्रभु को याद करने से प्रभु को मजा नहीं आयेगा लेकिन प्रभु को याद करने से उतनी देर तुम नश्वर चीजों से, राग-द्वेष व कर्मों के जाल से बचोगे ।
नूतन वर्ष
दीपावली का दूसरा दिन (गुजराती विक्रम संवत् के अनुसार) वर्ष के प्रारम्भ का दिन है । इस दिन से विक्रम संवत् शुरू होगा । राजा विक्रमादित्य ने अपने पराक्रम, उत्साह, मनोबल, निर्भयता, परोपकारिता के सद्गुणों से स्वार्थी, लम्पट, शोषक शकों को भगाया था । यह विक्रम संवत् विक्रमादित्य की याद दिलाता है, साथ ही जीवन में उत्साह भरता है कि तुम्हारा जीवन ऐसा दिव्य, ओज से पूर्ण होना चाहिए जिससे आसुरी वृत्तियाँ व कर्म तुम्हारे समय-शक्ति को नष्ट न कर पायें ।
इस दिन प्रातःकाल ईश्वर-चिंतन, संतों का दर्शन-सत्संग इसी कामना से हम लोग करते हैं कि हमारा यह वर्ष तेजोमय, दिव्यता से भरा हुआ जाय । यह नूतन वर्ष के प्रथम दिन का प्रभात शायद जीवन का प्रभात हो जाय ।
जो इस दिन जिस भाव से रहता है उसका पूरा वर्ष उसी भाव में व्यतीत होता है । इस दिन व्यक्ति अगर प्रसन्न रहा तो वर्षभर प्रसन्नता में मदद मिलेगी और यदि शोकातुर रहा तो वर्षभर शोकातुरता का स्वभाव बढ़ जाता है ऐसा स्कंद पुराण में आता है । नूतन वर्ष के दिन यदि ईश्वर की उपासना में रहा तो वर्षभर उपासना में मदद मिलती रहेगी । इस दिन यदि परमात्म-ध्यान में घड़ीभर भी डूबा तो प्रतिदिन उसमें डूबने में सुविधा रहेगी ।
निर्मल प्रेम का प्रतीक : भाईदूज
भाई-बहन के परस्पर निर्दोष, निष्काम भाव को बढ़ोतरी देनेवाला पर्व भाईदूज है । संयमनीपुरी के देवता यमराज अपनी बहन यमी से भोजन आदि पाकर बड़े तृप्त हुए, बोले : ‘‘बहन ! जो माँगना है वह माँग ले ।’’
यमी : ‘‘भैया ! द्वितीया को जो भी तुम्हारी यमपुरी में आये उसकी सद्गति हो जाय ।’’
यमराज बोले : ‘‘इससे तो व्यवस्था भंग हो जायेगी । फिर भी बहन ! तुम्हारे-हमारे मधुर मिलन की याद बनी रहे, समाज बहन-भाई के मधुर संबंध की गरिमा को समझकर संयमी जीवन जिये, इसमें लौकिक-पारलौकिक दोनों भाव छुपे हैं । तो मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि आज के दिन जो भाई बहन के हाथ से भोजन पाये और उसके शील की, धर्म की रक्षा का भाव करे तथा जो बहन भाई की उन्नति का भाव करे उन सभीकी सद्गति होगी ।’’