Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

सर्वोपरि ज्ञान, सुख व पुण्य देनेवाला महापर्व - गुरुपूर्णिमा

गुरुपूर्णिमा महापर्व : 13 जुलाई

गुरुपूनम का इतिहास बड़ा उज्ज्वल इतिहास है । गुरुपूनम का ज्ञान सर्वोपरि ज्ञान है । गुरुपूनम का लाभ सर्वोपरि लाभ है । गुरुपूनम का सुख सर्वोपरि सुख है और गुरुपूनम का पुण्य सर्वोपरि पुण्य है । यह पर्व इतना व्यापक और महान है कि इसकी बराबरी कोई पर्व नहीं कर सकता है । गुरुपूर्णिमा उन महापुरुष महर्षि वेदव्यासजी की याद में मनाते हैं जिन्होंने होश सँभालते ही लोगों का मंगल सोचा ।

जहाँ इन्द्र भी बबलू हो जाते हैं

गुरु शब्द की बड़ी भारी महिमा है । ‘गु’ माने अंधकार, ‘रु’ माने प्रकाश । इसी शब्द की दूसरी व्याख्या भी है - जो अंधकार, नासमझी को मिटानेवाला आत्मज्ञान का प्रकाश दे दें वे गुरु हैं । श्रीविष्णुसहस्रनाम में भगवान के हजार नामों में एक नाम ‘गुरु’ भी है ।

‘ग’ माने पुण्यराशि को प्रकट करनेवाला, ‘र’ माने पापराशि को नष्ट करनेवाला, ‘उ’ माने अव्यक्त आत्मा को व्यक्त करने की सत्ता - ये जिसमें हैं वह ‘गुरु’ शब्द है । एक गुरु शब्द में पापनाशिनी, पुण्य-उभारिनी और अव्यक्त ब्रह्म-परमात्मा को व्यक्त करने की शक्ति है । जैसे बीज में वृक्ष छुपा है ऐसे ही सबमें जो परमात्म-चेतन छुपा है उसको प्रकट करनेवाला मंत्र, शब्द है ‘गुरु’ ।

और जो भगवान का रस व ज्ञान दे दें, भगवान से प्रीति करा दें ऐसे संतों को भी गुरु कहते हैं । वे संत कैसे होते हैं ? भगवान शिवजी ने कहा है :

जलानां सागरो राजा यथा भवति पार्वति 

गुरुणां तत्र सर्वेषां राजायं परमो गुरुः ।।

जैसे समुद्र सब जलाशयों का राजा है, ऐसे ही जो भगवान का ज्ञान, प्रीति दे दें, भगवान का नाम दे दें और भगवान से हमारे दिल को लगा देने की शक्ति, कृपा, उपदेश दे दें, वे अनुभवी ब्रह्मवेत्ता सब गुरुओं में राजा हैं, परम गुरु हैं ।

जगत में एक से बढ़कर एक श्रेष्ठ लोग होते हैं लेकिन आत्मज्ञानी गुरु सभी श्रेष्ठ लोगों में पराकाष्ठा हैं । जैसे हाथी सब जीव-जंतुओं से बड़ा है लेकिन हिमालय के आगे हाथी भी बबलू है, ऐसे ही सभी मान करने योग्य लोगों में इन्द्र हाथी के समान बड़े हैं लेकिन आत्मा-परमात्मा का ज्ञान देनेवाले आत्मसाक्षात्कारी गुरु के आगे इन्द्र भी बबलू हो जाते हैं ।

गुरुपूनम सभी जाति-वर्ग के लोग मनाते हैं । मनुष्य तो ठीक, देवता और दैत्य भी मनाते हैं । इतना ही नहीं, भगवान श्रीकृष्ण गुरु सांदीपनि के चरणों में जाते और भगवान श्रीराम श्री वसिष्ठजी के चरणों में जाते । यह गुरुपूनम का पर्व इतना महत्त्वपूर्ण है !

ब्रह्मज्ञानियों के आदर का दिवस

गुरुपूनम सचमुच में लघु को गुरु बनानेवाली है, मरणधर्मा शरीर को साधन बनाकर अमर ईश्वर से मिलानेवाली है । आखिर तो बुढ़ापा मौत की तरफ ले जायेगा । वह मौत की तरफ ले जाय उसके पहले आत्मा-परमात्मा से मिलाने की व्यवस्था गुरुपूनम की है, गुरुकृपा की है । लाचार-मोहताज जीव को स्वतंत्र, श्रेष्ठ, ब्रह्मज्ञानी बनाने की व्यवस्था गुरुपूनम में है । गुरु का ज्ञान मुफ्त में हजम नहीं होता, कुछ-न-कुछ करना चाहिए, तो भले थोड़ा करते हैं लेकिन इस गुरुपूनम का हम क्या बदला चुका सकते हैं ?

ब्रह्मज्ञानियों ने समाज को क्या-क्या दिया है ! इतने लाखों-करोड़ों लोग देश-परदेश में हमारा सत्संग सुनते हैं, इसमें भी ब्रह्मज्ञानी मेरे गुरुदेव लीलाशाहजी का ही तो प्रसाद है ।

ब्रहमगिआनी की मिति1

कउनु बखानै 

ब्रहमगिआनी की गति ब्रहमगिआनी जानै 

ब्रहमगिआनी मुकति2 जुगति3

         जीअ4 का दाता 

ब्रहमगिआनी पूरन पुरखु5 बिधाता 

ब्रहमगिआनी का कथिआ  जाइ अधाख्यरु 6

ब्रहमगिआनी सरब7 का ठाकुरु8 

ऐसे ब्रह्मज्ञानियों के आदर का दिवस हर रोज है लेकिन व्यासपूर्णिमा विशेष है । ऐसे ब्रह्मस्वरूप व्यासजी के आदर में व्यासपूर्णिमा मनाते हैं । जो ब्रह्मज्ञानियों का आदर करता है वह आदरणीय हो जाता है । मैं थोड़े ही बोलता हूँ कि आप मेरा आदर करो लेकिन मैंने अपने गुरु का आदर किया तो आप मेरा आदर करते हैं । जो ब्रह्मज्ञानियों का दर्शन करता है उसको करोड़ों तीर्थ-स्नान करने का फल मिलता है । जो गुरु की विद्या को पचाता है वह सर्वोपरि विद्या का धनी हो जाता है । गुरु की विद्या ‘आत्मज्ञान’ होती है । जो ब्रह्मज्ञानी के दैवी कार्य की सेवा करता है उसका निष्काम कर्मयोग फलित होने लगता है, भक्तियोग भरपूर होने लगता है, ज्ञानयोग चमकने लगता है ।

तीनों प्रकार से विकास

गुरु के सिद्धांत को लोगों तक पहुँचाना, दूसरों के काम आना - यह समाज की सेवा है । गुरु के ज्ञान में अपने को डुबाना, एकांत में अपने-आपमें आना - यह अपनी सेवा है । प्रभु को अपना मानकर उनकी स्मृति और प्रेम जगाना - यह प्रभु की सेवा है । तीनों प्रकार से विकास-ही-विकास है ।

गुरुपूनम का संदेश

गुरुपूनम आपको यह संदेशा देती है कि ‘आप लघु होकर भले आये हैं लेकिन लघु हो के संसार से विदा न होना । लघु चीजों में प्रीति करके, लघु आकर्षणों में भटक के नीच योनियों में नहीं जाना बल्कि गुरु-तत्त्व में प्रीति करके परमात्म-तत्त्व को जान लेना । इसीके लिए तुम्हारा जन्म हुआ है ।’

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1. परिमाण, माप, उनकी स्थिति का अनुमान 2. मुक्ति 3. युक्ति 4. जीवन 5. पूर्ण पुरुष 6. ब्रह्मज्ञानी की महिमा काआधा अक्षर भी वर्णन नहीं किया जा सकता 7. सर्व 8. भगवान/पूज्य