Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

मान किसका स्थिर रहता है ?

जो मान के योग्य कर्म तो करता है लेकिन मान की इच्छा नहीं रखता, उसका मान स्थिर हो जाता है । भगवान मान के योग्य कर्म करते हैं लेकिन भगवान में मान की इच्छा नहीं इसलिए भगवान का मान है । ऐसे ही समर्थ रामदासजी, एकनाथजी, तुकारामजी, साँईं लीलाशाहजी बापू, रमण महर्षिजी आदि का मान क्यों है ? क्योंकि वे मान के योग्य कर्म तो करते हैं परंतु उनमें मान की इच्छा नहीं होती । जो करें वह अंतर्यामी ईश्वर की प्रसन्नता पाने के लिए करें । मन से जो विचार करें वह ईश्वर के अनुकूल करें । बुद्धि से जो निर्णय करें वह ईश्वर की ‘हाँ’ में ‘हाँ’ करके निर्णय करिये । महाराज ! ईश्वर की ‘हाँ’ में ‘हाँ’ कैसे ? कोई बोलेगा कि ‘मेरे को तो आया बुद्धि में तो ईश्वर ने प्रेरणा की ।’ तेरी वासना की प्रेरणा है कि ईश्वर की प्रेरणा है यह कैसे पता चले ? वासना की प्रेरणा ईश्वर की प्रेरणा का चोला पहनकर गड़बड़ करती है । ‘मेरा कुछ है नहीं, मुझे अपने लिए नहीं चाहिए’ तो यह समझो ईश्वर की प्रेरणा है । ‘मुझे जो चाहिए वह सब मेरी चाह जल जाय और ईश्वर को जो चाहिए वह होता रहे’ - ऐसी सोच हो तभी तो परम कल्याण होगा ।