Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

श्रद्धा की साक्षात् मूर्ति

सद्गुरु ही शिष्य को सही मार्ग दिखाते हैं एवं उस पर चलने की शक्ति देते हैं । सद्गुरु ही मार्ग के अवरोध बताते हैं तथा उनको दूर करने के उपाय बताते हैं । गुरु ही शिष्य की योग्यताओं को, शिष्य के अंदर छुपी अनंत सम्भावनाओं को जानते हैं ।

देवर्षि नारदजी ने पार्वतीजी के बारे में कहा था : ‘‘यह कन्या सब गुणों की खान है । यह सारे जगत में पूज्य होगी । इसका पति योगी, जटाधारी, निष्काम-हृदय और अमंगल वेशवाला होगा ।’’

पार्वतीजी के माता-पिता दुःखी हो गये । पार्वतीजी के पिता ने नारदजी से पूछा : ‘‘हे नाथ ! अब क्या उपाय किया जाय ?’’

नारदजी बोले : ‘‘उमा को वर तो वैसा ही मिलेगा जैसा मैंने बताया है परंतु मैंने जो लक्षण बताये हैं, मेरे अनुमान से वे सभी शिवजी में हैं । यद्यपि संसार में वर अनेक हैं पर पार्वती के लिए शिवजी को छोड़कर कोई योग्य वर नहीं है । शिवजी समर्थ हैं क्योंकि वे भगवान हैं । तप करने से वे बहुत जल्दी संतुष्ट हो जाते हैं । यदि तुम्हारी कन्या तप करे तो शिवजी होनहार को मिटा सकते हैं ।’’

कुछ समय बीतने पर पार्वतीजी ने तपस्या शुरू की । शिवजी ने सप्तर्षियों को उनके पास परीक्षा लेने हेतु भेजा । सप्तर्षियों ने कहा : ‘‘नारद का उपदेश सुनकर आज तक किसका घर बसा है ? दक्ष के पुत्रों को उपदेश दिया तो उन्होंने फिर लौटकर घर का मुँह भी नहीं देखा । नारद ने ही हिरण्यकशिपु का घर चौपट किया । जो भी नारद की सीख सुनते हैं वे घर छोड़कर अवश्य ही भिखारी हो जाते हैं । उनके वचनों पर विश्वास कर तुम ऐसा पति चाहती हो जो स्वभाव से ही उदासीन, गुणहीन, निर्लज्ज, बुरे वेशवाला, नर-कपालों की माला पहननेवाला, कुलहीन, बिना घर का और शरीर पर साँपों को लपेटे रखनेवाला है ? ऐसे वर के मिलने से तुम्हें क्या सुख होगा ? तुम उस ठग के बहकावे में आकर खूब भूलीं । पहले शिवजी ने सती से विवाह किया था परंतु फिर उसे त्यागकर मरवा डाला । अब वे भीख माँगकर खा लेते हैं और सुख से सोते हैं । ऐसे स्वभाव से ही अकेले रहनेवालों के घर भी भला क्या कभी स्त्रियाँ टिक सकती हैं ? हमारा कहा मानो, हमने तुम्हारे लिए अच्छा वर विचारा है । वह बहुत ही सुंदर, पवित्र, सुखदायक और सुशील है, जिसका यश और लीला वेद गाते हैं । वह दोषों से रहित, सारे सद्गुणों की राशि, लक्ष्मी का स्वामी और वैकुंठपुरी का रहनेवाला है । हम ऐसे वर को तुमसे मिला देंगे ।’’

पार्वतीजी ने कहा : ‘‘मैं नारदजी के वचनों को नहीं छोड़ूँगी, चाहे घर बसे या उजड़े - इससे मैं नहीं डरती । जिसको गुरु के वचनों में विश्वास नहीं है, उसको सुख और सिद्धि स्वप्न में भी सुगम नहीं होती ।’’

गुर कें बचन प्रतीति न जेही ।

सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही ।।

‘‘मेरा तो करोड़ जन्मों तक यही हठ रहेगा कि या तो शिवजी को वरूँगी, नहीं तो कुँवारी ही रहूँगी । स्वयं शिवजी सौ बार कहें तो भी नारदजी के उपदेश को न छोड़ूँगी ।’’

तजउँ न नारद कर उपदेसू । 

आपु कहहिं सत बार महेसू ।।

(श्री रामचरित. बा.कां.)

नारदजी के वचनों में दृढ़ श्रद्धा-विश्वास व अपने स्वानुभव के प्रताप से पार्वतीजी ने नारदजी के प्रति रंचमात्र भी संशय को अपने मन में फटकने नहीं दिया । शिवजी के पास जाकर सप्तर्षियों ने सारी कथा सुनायी । पार्वतीजी का ऐसा प्रेम तथा गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा देख शिवजी ध्यानस्थ हो गये । जब शिवजी ने कामदेव को भस्म किया, तब पुनः सप्तर्षि पार्वतीजी के पास जाकर बोले : ‘‘तुमने हमारी बात नहीं सुनी । अब तो तुम्हारा प्रण झूठा हो गया क्योंकि शिवजी ने कामदेव को ही भस्म कर डाला ।’’

पार्वतीजी मुस्कराकर बोलीं : ‘‘हे मुनिवरो ! आपकी समझ में शिवजी ने कामदेव को अब जलाया है, अब तक तो वे विकारयुक्त ही रहे ! किंतु हमारी समझ से तो शिवजी सदा से ही योगी, अजन्मे, अनिंद्य, कामरहित व भोगहीन हैं और यदि मैंने शिवजी को ऐसा समझकर ही मन, वचन और कर्म से प्रेमसहित उनकी सेवा की है तो वे कृपानिधान भगवान मेरी प्रतिज्ञा को सत्य करेंगे ।’’ और अंततः पार्वतीजी ने शिवजी को पा लिया ।

पार्वतीजी ने अपने जीवन से सीख दी है कि शिष्य का अपने गुरु के प्रति विश्वास तथा अपने लक्ष्य (ईश्वरप्राप्ति) पर अडिगता कैसी होनी चाहिए । अपने गुरु के प्रति ऐसा दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि ‘मेरे गुरु शिवस्वरूप हैं, ब्रह्मस्वरूप हैं, साक्षात् अचल ब्रह्म हैं । वे ही मुझे पार लगानेवाले हैं, वे ही तारक और उद्धारक हैं ।’ पार्वतीजी ने हमें यह सीख दी है कि अगर सप्तर्षि जैसे महान व्यक्ति भी हमारे सद्गुरु के बारे में कुछ गलत कहें तो उनकी बात को भी अस्वीकार कर देना चाहिए ।