Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश’ से बदला जीवन

एक बार पूज्य बापूजी ने मुझे दिव्य प्रेरणा-प्रकाश पुस्तक पढ़ने को कहा था । मैंने उसी दिन से पुस्तक पढ़ने का नियम ले लिया, जिससे मेरे जीवन में बहुत बदलाव आया । मेरी बुद्धि और भी तेज हुई, तरक्की की नयी-नयी युक्तियाँ सूझने लगीं । पहले मुझे लगता था कि खाना-पीना, ऐश करना यही जिंदगी है लेकिन अब पता चला कि सच्चा जीवन क्या है, भारतीय संस्कृति का महत्त्व क्या है ।

कुछ साल पहले मुझमें बहुत-से व्यसन एवं बुरी आदतें थीं, जैसे लड़कियों से बात करने का आकर्षण, उनके पीछे घूमना, बुरी नजर से देखना । मेरी काफी फ्रेंड्स भी थीं । पहले मैं किसी लड़की को देखता था तो मन में विकारी विचार आते थे लेकिन जब दिव्य प्रेरणा-प्रकाशपुस्तक पढ़ी तो मुझे मालूम पड़ा कि स्त्री को गलत नजर से नहीं देखना चाहिए, इससे पतन होगा । अगर परस्त्री को देखकर बुरा विचार आता है तो इसमें दिया मंत्र जपने से विकारों से बचने में सहायता मिलती है ।

मीडिया में फालतू बातें चलीं कि इस किताब में गलत बातें लिखी हैं । आप यह किताब एक बार पढ़ के तो देखिये ! आपको खुद अनुभव होगा कि इसमें कितना अच्छा लिखा है । असंख्य किशोर व युवा इस किताब को पढ़ के संयम-ब्रह्मचर्य की महिमा समझ रहे हैं । गंदे चलचित्र, चरित्रभ्रष्ट करनेवाले साहित्य और अश्लील मीडिया एवं स्वार्थी सेक्सोलॉजिस्ट लेखकों द्वारा गुमराह किये गये शारीरिक और मानसिक रोगों से पीड़ित लोग भी अपने जीवन को सुधार रहे हैं, खोया हुआ शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक सामर्थ्य और बौद्धिक योग्यता प्राप्त कर रहे हैं और एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर रहे हैं । तो इसमें अगर कोई आपत्ति उठाता है तो इससे सिद्ध होता है कि वे हमारे समाज को चरित्रभ्रष्ट करने पर तुली हुई विदेशी ताकतों के इशारों पर इस देश की युवा पीढ़ी को बरबाद करना चाहते हैं ।

ब्रह्मचर्य की शिक्षा कोई नयी शिक्षा नहीं है । अनादिकाल से विश्व के सब धर्मों के आचार्यों, ऋषि-मुनियों, योगियों, तत्त्वचिंतकों, पीर-फकीरों और महापुरुषों ने ब्रह्मचर्य का महत्त्व समझाया है । आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी इसका समर्थन किया है । इसलिए कोई इसका विरोध करते हैं तो वे उन सबके विरोधी हैं जिन्होंने समाज को पवित्र, चरित्रवान और नैतिक मूल्यों से सम्पन्न बनाने के लिए ब्रह्मचर्य का उपदेश दिया । वे समाज को चरित्रभ्रष्ट, नीतिभ्रष्ट और धर्मभ्रष्ट करके भी अपना स्वार्थ सिद्ध करनेवालों के सिवा और कौन हो सकते हैं ? ऐसे संस्कृति-विनाशक तत्त्वों से समाज को सावधान रहना चाहिए ।

यदि आप भी चाहते हैं कि आपके व दूसरों के जीवन में खूब तरक्की हो तो इसे पढ़िये-पढ़ाइये ।  

- जितेन्द्र लखवानी, अहमदाबाद

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